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करता है। वास्तव में, गुण द्रव्य की विशेषताएँ हैं जिनसे द्रव्य की महिमा प्रकट होती है। इस प्रकार वस्तु में अनन्त सामान्य व अनन्त विशेष गुण पाये जाते हैं। उन अनन्त सामान्य गुणों में, इन मुख्य छह सामान्य गुणों की चर्चा आगमों में की गई है। वे इस प्रकार हैं -
१. अस्तित्व २. वस्तुत्व ३. द्रव्यत्व ४. प्रमेयत्व ५. प्रदेशत्व ६. अगुरुलघुत्व गुण।
प्रत्येक द्रव्य का अपना-अपना सामान्य गुण पृथक्-पृथक् होता है। ऐसा नहीं है कि जो अस्तित्व गुण जीव द्रव्य में है वही गुण पुद्गल द्रव्य में भी है, क्योंकि जीव का अस्तित्व चेतनामयी और पुद्गल का अस्तित्व स्पर्श-रस-गंध-वर्णमयी है, इसी प्रकार सभी गुण समझना चाहिए। अस्तित्व आदि गुणों को हम इस प्रकार भी परिभाषित कर सकते हैं कि द्रव्य की विशेषता जिसके कारण द्रव्य की सत्ता त्रिकाल कायम रहे और कभी नाश को प्राप्त न हो अर्थात् द्रव्य की सत्ता अस्तित्व गुण के कारण है न कि पर के कारण। प्रत्येक द्रव्य अपना प्रयोजनभूत/अर्थक्रियाभूत कार्य अपने वस्तुत्व गुण के कारण करता है, अन्य किसी की प्रेरणा या मदद के द्वारा नहीं। प्रत्येक द्रव्य की परिणमनशीलता अनादि अनन्त कायम रहती है उसकी द्रव्यत्व गुण की शक्ति से, न कि पर सहयोग की अपेक्षा। इसी प्रकार प्रेमपत्व गुण, द्रव्य की ज्ञेय बनने की सामर्थ्य यानि ज्ञेयत्वपना। प्रदेशत्व गुण, आकारादि होने की योग्यता और अगुरुलघुत्व गुण द्रव्य की अपनी सीमा से बने रहने की सामर्थ्य के प्रतिपादक हैं।
विशेष गुण के कारण द्रव्य पृथक् रूप से पहचाना जा सकता है, क्योंकि यह प्रत्येक द्रव्य का भिन्न-भिन्न होता है। जैसे -
१. जीवद्रव्य में - ज्ञान-दर्शन-चारित्र आदि अनन्त गुण पाये जाते हैं जो उसके अन्य द्रव्यों से भित्र अस्तित्व को प्रकट करते हैं।
२. पुद्गल द्रव्य में - स्पर्श-रस-गन्ध-वर्ण आदि अनन्त विशेष गुण। ३. धर्मद्रव्य में - गतिहेतुत्व अर्थात् जीव व पुद्गल की गमन में निमित्तता आदि। ४. अधर्मद्रव्य में - स्थिति हेतुत्व। ५. आकाशद्रव्य में - अवगाहन हेतुत्व। ६. कालद्रव्य में - जीव व पुद्गल के परिणमन में निमित्त होता है।
इस प्रकार सामान्य गुण वस्तु के द्रव्यपने की सूचक और विशेष गुण अनेक द्रव्यों में से एक द्रव्य को भिन्न बतलाने वाले कारक हैं। गुण द्रव्य से अलग नहीं है,