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________________ जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में वस्तु - स्वातन्त्र्य एवं द्रव्य की अवधारणा कु० अल्पना जैन* जैनदर्शन में वस्तु, द्रव्य, तत्त्व, पदार्थ, अर्थ, सामान्य, अन्वय, धर्मी सभी एकार्थवाचक हैं। एक ही वस्तु को विभिन्न नामों से अभिहित किया गया है। इसमें शब्दभेद होते हुए भी अर्थभेद किंचित् मात्र नहीं है। जैनदर्शन में वस्तु या द्रव्य के स्वभाव को “सत्रूप’” माना गया है। सत्रूप / सत्ता सहित वस्तु को जाना जा सकता है, विचार किया जा सकता है। जब तक वस्तुओं के सत् अस्तित्व को स्वीकार न कर लिया जाय, तब तक उनके सम्बन्ध में विचार सम्भव नहीं है, क्योंकि असत्रूप वस्तु तो आकाश कुसुम, बन्ध्यापुत्र व शशश्रृंगवत् असम्भव है। अतः उसका न तो ज्ञान, न ही विचार और न प्ररूपणा सम्भव है। इसलिए तत्त्वार्थसूत्र के प्रणेता आचार्य उमास्वाति ने कहा है कि "सत् द्रव्यलक्षणं "" अर्थात् द्रव्य का लक्षण सत्पना है। सत् अर्थात् सत्तावान/अस्तित्ववान, जिनका स्वतः सिद्ध अस्तित्व हो और जिनका निरन्वय नाश असम्भव हो। अतः विश्व के समस्त पदार्थ सत्तावान हैं। यह सत्ता लोक- अलोक सहित समस्त पदार्थों में व्याप्त है, सर्व पदार्थ स्थित है क्योंकि सत्ता के कारण सब पदार्थों में "सत्” ऐसे कथन की ओर "सत्" ऐसे ज्ञान की उपलब्धि होती है। उक्तंच " अस्तित्व ही द्रव्य का स्वभाव है, वह (अस्तित्व) अन्य साधन से निरपेक्ष होने के कारण अनादि अनन्त होने से अहेतुक, एकवृत्ति रूप सदा प्रवर्तता होने से द्रव्य के साथ एकत्व को धारण करता हुआ द्रव्य का स्वभाव क्यों न हो? अवश्य हो । ” इस प्रकार सत्रूप वस्तु पर से निरपेक्ष, स्वसहाय, स्वतन्त्र, स्वतः सिद्ध, अनादि-निधन है। इसी तथ्य को पंचाध्यायीकार इस प्रकार व्यक्त करते हैं - - ܕ "तत्त्व सत्लक्षण वाला है, सत्मात्र है क्योंकि वह स्वतः सिद्ध है इसलिए वह अनादिनिधन, स्वसहाय व निर्विकल्प है। "३ यदि सत् वस्तु को पूर्वोक्त लक्षणों से युक्त न माना जाय तो अनेक दूषण उत्पन्न होंगे। स्वतःसिद्ध न मानने पर असत् पदार्थ की उत्पत्ति निरंकुश माननी होगी, क्योंकि बिना सत्ता के नवीन रूप की उत्पत्ति मानने पर वस्तु की कोई मर्यादा नहीं रह जाएगी और संसार में अनन्त द्रव्य होते चले जाएँगे व मृदा के अभाव में घट की उत्पत्ति * रिसर्च फेलो, आई०सी०पी०आर०, डॉ० हरीसिंह गौर वि०वि०, सागर (म०प्र०)
SR No.525050
Book TitleSramana 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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