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________________ ११२ इसी तिथि और वार युक्त एक दूसरी प्रतिमा आदिनाथ की है जो नागौर स्थित चौसठियाजी के मंदिर में संरक्षित है। श्री विनयसागर ने इसकी वाचना प्रस्तुत की है, जो इस प्रकार है : - सं० १४२५ वर्षे वैशाख सुदि १.... मं० श्रीधर पुत्र देवयाकेन भ्रातृ पवलणदे (?) श्रेयोर्थं श्रीआदिनाथबिबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छीय श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनेश्वरसूरिभिः।। यद्यपि उक्त प्रतिमालेखों में बेगड़शाखा का कहीं नामोल्लेख भी नहीं है, फिर भी समसामयिकता, नामसाम्य आदि के आधार पर शाखा प्रवर्तक आचार्य जिनेश्वरसूरि और उक्त प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लिखित जिनचन्द्रसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि को एक ही व्यक्ति मानने में कोई बाधा दिखाई नहीं देती। ठीक यही बात चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, बीकानेर में संरक्षित अभिनंदननाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण वि०सं० १४३८/ई० सन् १३७२ के लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लिखित सोमदत्तसूरि के गुरु जिनेश्वरसरि के बारे में कही जा सकती है। लेख का मूलपाठ निम्नानुसार है : सं० १४३८ ज्येष्ठ सुदि ४ शनो (शनौ) छाजहड़वंशे पितृवंशे महं लाखा मातृ लाखणदे पुण्यार्थं सुतललताकेन श्री अभिनन्दननाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीजेिश्वरसूरिपट्टे श्रीसोमदत्तसूरिभिः॥ ____ जिनेश्वरसूरि के पट्टधर जिनशेखरसूरि द्वारा रचित न तो कोई कृति ही मिलती है और न ही इनके द्वारा प्रतिष्ठापित कोई प्रतिमा ही प्राप्त हुई है, किन्तु इनके पट्टधर जिनधर्मसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित ६ जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं, जो वि०सं० १४९१/ ई० सन् १४३५ से वि०सं० १५१३/ई० सन् १४५७ तक की हैं। इन प्रतिमालेखों में भी कहीं बेगड़शाखा का नामोल्लेख नहीं मिलता। जिनधर्मसूरि के शिष्य विनयमेरुगणि ने वायडगच्छीय आचार्य जिनदत्तसूरि द्वारा रचित विवेकविलास की वि०सं० १४९७/ई० सन् १४४१ में प्रतिलिपि की। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु - परम्परा की एक तालिका दी है, जो इस प्रकार है: जिनचन्द्रसूरि जिनेश्वरसूरि जिनशेखरसूरि जिनधर्मसूरि विनयमेरुगणि (वि०सं० १४९७/ई० सन् १४४१ में विवेकविलास के प्रतिलिपिकार)
SR No.525050
Book TitleSramana 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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