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से गुफा संख्या ३२ की महावीर मूर्तियां सर्वाधिक विकसित कोटि की हैं। इनमें सिंह लांछन तथा त्रिछत्र, चामरधर एवं प्रभामण्डल जैसे प्रमुख प्रातिहार्यो और यक्ष-यक्षी के रूप में पारम्परिक मातंग और सिद्धायिका के स्थान पर कुबेर और अंबिका को निरूपित किया गया है।
गुफा संख्या ३३ के मण्डप की दक्षिणी भित्ति की ध्यानस्थ महावीर की मूर्ति सिंह लांछन एवं द्विभुज कुबेर तथा द्विभुजा अंबिका (आम्रलुम्बि एवं शिशु के साथ) सहित प्रदर्शित है।११
___गुफी संख्या ३३ का ऊपरी तल तीर्थंकर मूर्तियों की दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय है। इसकी भित्तियों पर सभी २४ तीर्थंकरों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। इस गुफा में महावीर एवं पार्श्वनाथ की कई मूर्तियां हैं। गुफा ३३ के गर्भगृह में महावीर की विशाल प्रतिमा प्रतिष्ठित है। महावीर पूर्ववत् ध्यानमुद्रा में सिंहासन पर बैठे हैं। पादपीठ के मध्य में सिंह लांछन एवम् सिर के ऊपर त्रिछत्र शोभित है।
एलोरा की महावीर मूर्तियों के अध्ययन से स्पष्ट है कि उनके निरूपण में एकरूपता मिलती है और पार्श्वनाथ तथा गोम्मटेश्वर बाहुबली की तुलना में एलोरा में उनका महत्त्व अपेक्षाकृत कुछ कम था। सभी उदाहरणों में सिंहासन या पादपीठ के नीचे सिंह लांछन का अंकन हुआ है जबकि यक्ष-यक्षी मुख्य रूप से गुफा संख्या ३ के उदाहरणों में ही नियमित रूप से दिखाये गये हैं। एलोरा में महावीर के यक्ष और यक्षी के रूप में पारम्परिक मातंग और सिद्धायिका के स्थान पर २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ के यक्ष-यक्षी कुबेर या सर्वानुभूति और अंबिका को निरूपित किया गया है। यह पश्चिम भारत की श्वेताम्बर परंपरा की जिन मूर्तियों की एक विशेषता रही है, जिनमें सामान्यत: सभी तीर्थंकरों के साथ जैन परम्परा के प्राचीनतम यक्ष-यक्षी कुबेर और अंबिका को रूपायित किया गया है। एलोरा में अन्य स्थलों की भाँति गजवाहन वाले कुबेर के एक हाथ में धन का थैला और सिंहवाहना द्विभुजा अंबिको के साथ आम्रलुम्बि तथा बालक एवं शीर्ष में आम्रवृक्ष का अंकन हआ है।३ जो उनके शक्ति और मातृस्वरूप दोनों को संयुक्तरूप से व्यक्त करता है। इस प्रकार एलोरा की महावीर मूर्तियां एक दृष्टि से पश्चिमी भारत के श्वेताम्बर परंपरा से भी जुड़ी हैं। साथ ही ऐहोल की प्रारंभिक चालुक्य (लगभग ७वीं शती ई०) महावीर मूर्तियों का परवर्ती विकसित रूप एलोरा की महावीर मूर्तियों में देखा जा सकता है। एलोरा में पार्श्वनाथ के अंकन में कायोत्सर्ग में खड़े पार्श्वनाथ के साथ उनके उपसर्गों का अंकन किया गया है, जो उनकी साधना या तपश्चर्या के अंतिम चरण का सूचक है। इसी कारण उनमें त्रिछत्र या अष्टप्रातिहार्यों का अंकन नहीं मिलता, जबकि महावीर की मूर्तियां अधिकांशतः अष्ट प्रा तिहार्यों के साथ गर्भगृह या मण्डपों में प्रतिष्ठित हैं और उनमें ध्यानस्थ महावीर को यक्ष-यक्षी के साथ दिखाया गया है, जो इस बात को स्पष्ट करता है कि महावीर