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________________ जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण : ६५ का गन्दा पानी समुद्र में बहा दिया जाता है। समुद्री वनस्पति द्वारा इसका शोषण हुआ, वह वनस्पति मछलियों ने खाई। जिनमें अधिकांश की मृत्यु हुई। आज घर - घर में बर्तन मांजने, कपड़े धोने के लिये डिटर्जेंट का उपयोग किया जाता है । इससे फॉस्फोरस पानी में मिल जाता है, जिससे जलपर्णी नदी-नालों में अधिक पनपती है। उस कारण से वहाँ सड़न पैदा होती है। उस सड़न के लिये अधिक प्राणवायु की जरूरत होती है। परिणामतः पानी में प्राणवायु घट जाता है जो दूसरे जलचर जीवों के लिये अत्यंत जरूरी है। कीटनाशक दवाईयाँ भी पानी में पड़ती हैं। तो जलचर जीव नष्ट हो जाते हैं। साथ ही साथ जलचर जीवों का जो एक Biological Balance है, वह खंडित हो जाता है । " प्रकृति में उत्पत्ति - विकास और विनाश का चक्र अबाध रूप से चल रहा है जिसमें जलचक्र, नाइट्रोजन चक्र, कार्बनचक्र, बीज वृक्ष चक्र, दिन-रात, गरमीशीत, पृथ्वी, वनस्पति, प्राणी का मृत्योपरान्त पृथ्वीतत्त्व में विलीनीकरण, श्वासउच्छवास; ग्रहण- विसर्जन, संकुचन प्रसरण जारी है। श्वास के साथ ऑक्सीजन अंदर जाता है, उच्छवास में कार्बन डाई आक्साइड आता है जो वनस्पति के लिये आवश्यक है। वनस्पति प्राणवायु छोड़ती है जो प्राणी के लिये आवश्यक है। वनस्पति को काट कर हम अपने प्राणों का आयाम ही तोड़तें हैं और नाक दबाकर प्राणायम करने का ढोंग करते हैं। मनुष्य तथा प्राणी की विष्ठा से वनस्पति भोजन ग्रहण करती है तो वह फल - फूल-पत्ते हमें देती है। यह चक्र है संतुलन का । १० प्राणी का शरीर जब सड़ने लगता है तो उसमें समुर्च्छिम जीवों की उत्पत्ति होने लगत है। उसमें से नत्रवायु निकलता है । यही नत्रवायु सूक्ष्म जीवाणु द्वारा वायुमंडल में स्थिर रहता है। परस्परावलंबन - परस्पर सहायता के आधार पर अपनी उपजीविका चलती है । निसर्गचक्र की बुलंद कड़ियों को तोड़ने का काम आज मनुष्य कर रहा है। कुछ दिये बिना लेना मनुष्य की प्रवृत्ति बनती जा रही है। आत्मकेंद्री प्रवृत्ति के कारण सिर्फ प्रकृति से लिया, दिया कुछ नहीं। यदि दिया है तो हिंसक शस्त्राघात । शस्त्राघात से तेजकायिक जीव भी बचते नहीं। जो तेजकायिक जीवों की अपलाप करता है, वह अपना स्वयं का अपलाप करता है। जल तथा अग्नि को देवता माना जाता रहा है। भगवान् महावीर ने अहिंसा की दृष्टि से जल और अग्नि को जीव माना। पंच प्रमाद में (मद्य, विषय, कषाय, निद्रा व विकथा) व्यक्ति जब उलझ जाता है तब रांधना, पकाना, प्रकाश, ताप आदि की वांछा करता है । ११ औद्योगीकीकरण, यांत्रिकीकरण और वाहनों के उपयोग से तेजकाय जीवों का हिंसा होती है । दूरी का कारण बताकर स्वयंचलित वाहनों की उपयोगिता का समर्थन किया जाता है। लेकिन पेट्रोल के ज्वलन से वातावरण में विषैली गैसें फैल जाती हैं। यातायात की समस्या और साथ ही साथ प्रदूषण की भी समस्या है जो श्वाससंबधी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525049
Book TitleSramana 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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