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________________ ६४ सकता है वहाँ बड़े-बड़े महल बनाना, सिर्फ प्रशंसा पाने के लिए; मान-सम्मान के लिये आवश्यकता से अधिक ग्रहण करना अनर्थदंड है। इसे हम टाल सकते हैं। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पहला कदम है पृथ्वीकायिक जीवों पर शस्त्राघात नहीं करना । करना भी पड़े तो मर्यादा में - युक्ताचरणस्य सतो रागाद्यावेशमन्तरेणापि । न हि भवति जातु हिंसा प्राणव्यपरोपणदेव || सजगता में कोई कर्म करते हिंसा हो जावे तो उसका निकाचित कर्मबंध नहीं होता। परंतु प्रदूषण की दृष्टि से दोष हो सकता है। इसलिए इसे प्रतिबंधित करना होगा। हम आज क्षमाशीला पृथ्वी के साथ अन्याय कर रहे हैं। मनुष्य का लोभ और मान अधिक से अधिक भोग चाहता है और वह पर्यावरण का समतोल नष्ट करता है। जो विचार पृथ्वीकायिक जीवों के लिये है वही अपकायिक जीवों के लिये भी है। एक बाल्टी पानी में जो काम हो सकता है, उसके लिये घंटों - पाईप चालू रखना अप्कायिक जीवों की हिंसा है। पानी का अपव्यय होने का कारण है इसकी बिना श्रम उपलब्धि ! उसमें भी विराधना है। एक लापरवाही हिंसा तथा प्रदूषण को आमंत्रण देती है। अप्काय को महाभूत कहा है। आखिर भूत भूत है। वह अपना करिश्मा दिखा देगा। " से बेमि-णेव सयं लोयं अब्भाइक्खेज्जा"" लोक याने अपकायिक जीवों का निषेध न करें। शास्त्रकार का कथन है कि जो व्यक्ति अप्कायिक जीवों की सत्ता को नकारता है, वह अपनी ही सत्ता को करता है । जल के तीन प्रकार हैं १ ) सचित्त २) अचित्त और ३) मिश्र' | जल काय के सात शस्त्राघात बताये गये हैं। वे इस प्रकार हैं १) उत्सेचन - कुएँ आदि से जल निकालना २) गालन जल छानना ३) धोवन जल से उपकरण - बर्तनादि धोना ४) स्वकाय शंस्त्र - एक स्थान से दूसरे स्थान पर जल ले जाना ५) परकाय शस्त्र - मिट्टी, तेल, शर्करा आदि से युक्त जल ६) तदुभय भावशस्त्र असंयम भावशस्त्र बिना सोचे-समझे चलाया जा रहा है। तेलशोधक कारखानों का गन्दा पानी समुद्र में छोड़ दिया जाता है जो उसकी सतह पर लहरा रहा है। कारखानों ७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525049
Book TitleSramana 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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