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________________ २६ बढ़ते हुए तनाव और सर्वनाश की आशंका के कारण बन रही है। महावीर की अहिंसा का ऐसा संदर्भ स्वीकार न करें तो दोष हमारा है।' शाकाहार के पीछे पर्यावरण की चेतना छिपी है। मांसाहार हेतु हमें वातावरण को शुद्ध एवं पवित्र रखने वाले पशु-पक्षियों का हनन करना पड़ता है। कुछ जल को शुद्ध रखते हैं। कुछ वृक्षों की रक्षा का ज्ञान हमें देते हैं। वन्य पक्षी हरे-भरे मैदानों एवं जंगलों में निवास करते हैं और वे वहाँ तभी रहेंगे जब वन होंगे। वनों से वर्षा एवं शुद्ध वायु मिलती है। भू-स्खलन नहीं होता। भू-उर्वरकता बनी रहती है। दया-भावना हमें हिंसा से रोकती है और हमारे अन्दर आत्मीयता का भाव पैदा करती है। शाकाहारी भोजन पौष्टिक, सात्विक, सुपाच्य और स्वाथ्यवर्धक होता है। जब शाकाहार का प्रचार किया जाता है तो उसके पीछे प्रकृति की सुरक्षा-भावना रहती है। पर्यावरण में संयमसंतुलन रहना आवश्यक है। असंयम के बढ़ने से संतुलन बिगड़ जाता है और सर्वत्र वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण बढ़ने लगता है। महावीर ने इसलिए संयम को धर्म, जीवन कहा है-संयमः खलु जीवनम्। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य की परिभाषा में कहा है कि शरीर के संपूर्ण भौतिक, मानसिक तथा सामाजिक क्षेम-कुशल को स्वास्थ्य कहते हैं; यह निरोग या बलवान होने का नाम नहीं है। सर्वविदित है कि इस आरोग्यता के पीछे संयम की भावना है- संयम खाने-पीने में, सोच-विचार में, सामाजिक व्यवहार में रहेगा तो कोई प्रदूषण किसी स्तर पर नज़र नहीं आएगा। जैन मनीषियों की दृष्टि से सात्विक आहार वह है, जो जीवन तथा अनुशासन में सहायक हो, जो मादक न हो, जो कर्तव्य-विमुख न बनाए। सात्विक आहार अथवा सात्विक जीवन अर्थात् पर्यावरण का शुद्ध होना। यह सर्वविदित है कि जब मांसाहार की बात की जाती है तो मांस मात्र उन्हीं पशु-पक्षियों का खाया जाता है, जो शाकाहारी हैं, शेर, कुत्ता व बिल्ली जैसे मांसाहारियों का मांस कोई नहीं खाता। अत: शाकाहार स्वाभाविक भोजन है। कहते हैं कि मनुष्य का विकास बंदर से हआ है। बंदर को ही डार्विन ने अपने विकासवादी सिद्धान्त का केन्द्र माना है अर्थात् बन्दर ही विकास प्राप्त करते-करते मनुष्य रूप में परिवर्तित हुआ है। वह स्वयं शाकाहारी पशु है फलत: प्रकृति से मनुष्य भी शाकाहारी है। यह कहना कि मांसाहार अधिक पौष्टिक, संतुलित, प्रोटीन-विटामिन युक्त होता है, केवल अज्ञानता का सूचक है। दालों में, सोयाबीन में, मूंगफली में, सेब, संतरे में क्या कम प्रोटीन एवं विटामिन होते हैं? कहने की आवश्यकता नहीं कि शाकाहार पर्यावरण की सुरक्षा का बोध कराने वाला है। इससे जीवन में अनुशासन आता है। भोजन में भी अनुशासन संयम न रखा तो निश्चित रूप से हमारा अनिष्ट होगा। तीर्थंकरों के जन्म से पूर्व उनकी माताओं द्वारा देखे गए सोलह स्वप्न पशुपक्षी एवं प्राकृतिक जम मे सम्बद्ध हैं। तीर्थकरों की समवसरण सभा में प्रमद वन, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525049
Book TitleSramana 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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