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________________ जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण : २७ अशोक, सप्तपर्ण और आम्र वृक्षों का वर्णन है। साथ ही प्रत्येक जीव का स्थान निर्धारित है तथा सभी को तीर्थंकर वाणी सुनने का समानाधिकार है। पाँच अणुव्रत- अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह भौतिक पर्यावरण की शुद्धि में सार्थक हैं। मन, वचन और कर्म से किसी जीव की हिंसा न करना अहिंसा है। अशुद्ध जल का प्रयोग करने एवं अनावश्यक जल का प्रवाह भी अनन्त जल कायिक जीवों की हिंसा है। जल का उपयोग छानकर एवं उबालकर करना प्रत्येक श्रावक का कर्तव्य है। इस विधि से चिकित्सा विज्ञान भी सहमत है। इसके साथ-साथ आज पूरे विश्व में जला भाव के गंभीर संकट के कारण तृतीय विश्वयुद्ध की आशंका व्यक्त की जाने लगे है। इससे बचने का एकमात्र उपाय जैन विधि से की गयी जल शुद्धि एवं मितव्यता ही है। अहिंसा और सत्य अन्योन्याश्रित हैं। मनुष्य को हित, मित, प्रिय और हिंसारहित वचन बोलना चाहिए। आत्मवंचना, कूटनीति और धोखे का त्याग सत्य वचन से ही होता है। अतिचारों को दूर कर सत्य का पालन किया जाए तो दुष्प्रवृत्तियाँ देश की आर्थिक नींव नहीं हिला सकेंगी। मन, कर्म और वचन से किसी की संपत्ति बिना आज्ञा के न लेना और न देना अचौर्य अथवा अस्तेय है। चोरी की प्रेरणा देना, चोरी की वस्तु खरीदना, अनुचित के तरीके से धन संग्रह, राजाज्ञा का उल्लंघन, कम तौलना, मिलावट करना आदि अचौर्य अणुव्रत के अतिचार हैं। वनों की अवैध कटाई, अभ्यारण्यों में वन्य पशुओं का शिकार ,दोषयुक्त गैस उपकरणों व वाहनों का प्रयोग, रिश्वत लेना और देना स्तेय कर्म हैं। दहेज-दाह जैसे कुकृत्यों के पीछे क्रूर तरीके से धन हथियाना चौर्य कर्म और हिंसा है। अचौर्य व्रत पालन से सामाजिक अधिकारों की रक्षा होती है। इससे व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का आर्थिक पर्यावरण शुद्ध होता है। . जैनाचार्यों ने परिग्रह के २४ भेद बताये हैं। इनके भोगोपभोग की इच्छा परिग्रह है और नि:स्पृहता अपरिग्रह। अधिक सवारी रखना, अनावश्यक वस्तुएँ एकत्र करना, दूसरों का वैभव देखकर आश्चर्य एवं लोभ करना और बहुत भार लादना परिग्रह परिणाम व्रत के दोष हैं। लोभ के वशीभूत मानव परिग्रह संचय करता है। परिग्रह के संचय और रक्षा के लिए हिंसा, चोरी, झूठ व कुशीलता की ओर प्रवृत्त होता है। परिग्रह के परिणामस्वरूप अशांति, असंतोष व तनाव का जन्म होता है। परिग्रह परिमाण व्रत के पालन से आवश्यकताएँ सीमित तथा तृष्णा व कामनाएँ नियंत्रित होती हैं। फलत: प्राकृतिक संसाधनों की बचत होती है। अपरिग्रह से अहंकार नहीं आता और सच्ची मानवता का विकास होता है। ' पर्यावरण असंतुलन का सबसे बड़ा कारण मानव और उसकी निरंतर बढ़ती जनसंख्या है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए ब्रह्मचर्य व्रत सार्थक है। यह व्रत श्रावक के लिये स्वदार संतोष तथा श्रमण के लिए पूर्ण ब्रह्मचर्य का निर्देश करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525049
Book TitleSramana 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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