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________________ जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण : २५ की ओर संकेत करते हैं। चंद्रमा भी शीतलता, प्रकाश एवं स्वच्छता का प्रतीक है। ये सभी चिन्ह प्रतीकात्मक हैं और पर्यावरण की शुद्धता का भान कराते हैं। पर्यावरण की अनुभूति जैन विचारकों को हजारों वर्षों पूर्व थी, इसमें संदेह नहीं। यह पर्यावरण की अनुभूति ही थी, जिससे वन्य पशु, वन और वृक्ष, सभी की सुरक्षा का ध्यान जैन धर्म में रखा गया है। पर्यावरण की चर्चा के साथ अहिंसा और दया की भावना भी सामने आती है। महावीर आत्मतुलवाद के प्रवर्तक थे। उन्होंने संयम, आचरण, करुणा और दया पर विशेष बल दिया। आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने अपनी पुस्तक जैनधर्म : अर्हत् और अर्हताएं में एक स्थान पर लिखा है कि सृष्टि संतुलन शास्त्र आधुनिक विज्ञान की एक नई शाखा हो सकती है लेकिन एक जैन के लिए यह सिद्धान्त ढाई हजार वर्ष पुराना है। सृष्टि- संतुलन का जो सूत्र महावीर ने दिया, वह आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा- 'जो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व वनस्पति के अस्तित्व को स्वीकार करता है, वह अपने अस्तित्व को स्वीकार करता है। अपने अस्तित्व के समान उनका अस्तित्व मानता है। हम इस तुला से तोलें तो न केवल अहिंसा का सिद्धान्त ही फलित होता है अपितु पर्यावरण विज्ञान की समस्या का भी महत्वपूर्ण समाधान प्राप्त होता है। यह आवश्यक है- हम अहिंसा को केवल धार्मिक रूप में प्रस्तुत न करें। यदि उसे वर्तमान समस्याओं के संदर्भ में प्रस्तुत किया जाए तो मानव जाति को एक नया आलोक उपलब्ध हो सकता है।' भला अपना जीवन किसे प्रिय नहीं, सख कौन नहीं चाहता? हमें फिर क्या अधिकार है, दूसरों के प्राण लेने का? अब तो अनेक देश फांसी की सजा को अमानवीय कहकर उसका निषेध कर रहे हैं। दया, ममता, सहानुभूति मानवीय गुण हैं, इनमें हमारे जीवन मूल्यों की सुगन्ध भरी पड़ी है। एक विचारक ने कहा है कि दयाभाव सर्वोत्तम गुण है, मानव-जीवन का एकमात्र सिद्धान्त, नियम है। हम इस एक नियम को भी अपने जीवन में नहीं उतार सके! आज संसार के सभी देश आतंकवाद और हिंसावाद से पीड़ित हैं। हाल ही में अमेरिका में आतंकवाद का जो भीषण ताण्डव हुआ, वह इस सदी की महान् त्रासदी के रूप में देखा जा रहा है। संसार विनाश की ओर उन्मुख है, आंखों पर पट्टी बांधे वह सरपट दौड़ रहा है। मालूम नहीं उसका क्या परिणाम होगा? हम विश्व-शांति की चाह करते हैं, लेकिन चाह करने से कुछ नहीं होगा, अपने आपको पहचानना होगा। महावीर ने इसी का उपदेश दिया। 'महामानव महावीर' नामक अपनी पुस्तक में गुणवंत शाह ने ठीक ही लिखा है कि 'अहिंसा परम धर्म बन जाए, ऐसी अनुकूलता बढ़ते हुए औद्योगीकरण, प्रदूषण की समस्याओं, संतुलन की जरूरतों, ऊर्जा के संकट, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525049
Book TitleSramana 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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