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में जीने का हक है। हमें क्या अधिकार है अपने सुखार्थ दूसरे प्राणी की जान लेने की? हम यह क्यों भूल जाते हैं कि हमारे कारखानों, मिलों से जो गंदा, प्रदूषित जल या जहरीली गैस निकली है वह सभी प्राणियों के लिए हानिकारक है। नदियों में इतना विषैला रसायन बहाया जाता है कि मछलियाँ मरी हुई ऊपर तैरती दिखाई देती हैं। १९८२ में भोपाल में जहरीली गैस के रिसने से २०,००० से अधिक लोग मारे गये, अनेक जीवन भर के लिए अपंग हो गये, नेत्रों की ज्योति खो बैठे, विकृत मस्तिष्क हो गए । प्रकृति में संतुलन बना रहे, यही पर्यावरण है, फिर आपदा नहीं आयेगी।
जैन धर्म का पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण स्थान है। आधुनिक वैज्ञानिक युग से दो हजार वर्ष पूर्व उमास्वाति ने परस्परोपग्रहो जीवनाम्, सूत्र द्वारा लोगों में पर्यावरण की चेतना प्रदान की थी और उसे व्यापक आयामों में प्रस्तुत किया था। इस सहअस्तित्व के सिद्धान्त को आज वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं। वृक्ष प्रणियों द्वारा विसर्जित कार्बनडाईआक्साइड ग्रहण कर प्राणवायु आक्सीजन छोड़ते हैं। हमें फल, औषधि आदि प्रदान करते हैं तथा वायु, भूमि व जल प्रदूषण से हमारी रक्षा करते हैं। स्कॉटलैण्ड के वनस्पति वैज्ञानिक राबर्ट चेम्बर्स के अनुसार वनों का विनाश करने वाले अतिवृष्टि, अनावृष्टि, गर्मी, अकाल और बीमारी को आमंत्रित कर रहे हैं। आचारांगसूत्र के प्रथम पांच अध्यायों में षट्कायिक जीवों का वर्णन है। जैन वाङ्मय में जीवतत्त्व का सूक्ष्म वैज्ञानिक वर्णन और वर्गीकरण है। जीवों की जातियों के अन्वेषण की चौदह मार्गणायें, उनके विकास के चौदह गुणस्थान और आध्यात्मिक दृष्टि से गुणदोषों के आधार तथा जीवन के भेदोपभेद का भी वर्णन समाविष्ट है । पद्मपुराण में वृक्षारोपण को प्रतिष्ठा का विषय बताया गया है । वरांगचरित एवं धर्मशर्माभ्युदय में वनों, उद्यानों, वाटिकाओं तथा नदी के तटों पर वृक्षारोपण का वर्णन है।
तीर्थंकरों की प्रतिमाओं पर अंकित चिन्ह पशु-पक्षी से जुड़े हुए हैं। आदि तीर्थंकर ऋषभदेव का चिन्ह वृषभ है। यह भारतीय कृषि संस्कृति का आधार स्तम्भ है। यहाँ बैल से जुड़े घास के मैदान, साफ-स्वच्छ जल से भरे नदी, तालाब, हरीभरी खेती सभी साकार हो उठते हैं। गज (अजितनाथ), अश्व ( संभवनाथ ), वानर (अभिनंदननाथ), चकवा (सुमितनाथ), मकर (पुष्पनाथ), गैंडा (श्रेयांसप्रभु), महिष ( वासुपूज्य), शूकर (विमलनाथ), सही (अनन्तनाथ), हिरण (शांतिनाथ ), छाग (कुंथुनाथ), कच्छप ( मुनिसुव्रत ), सर्प (पार्श्वनाथ), सिंह (महावीर ) ये भी पशु-पक्षी मानव के लिए सहयोगी एवं उपयोगी हैं। इनके अतिरिक्त लालकमल (पद्मनाथ), तगर कुसुम (अरनाथ), नीलोत्पल (नमिनाथ), शंख (नेमिनाथ) प्रकृति विषयक हैं, जहाँ सौन्दर्य, शुद्ध वायु और सुगन्ध है । शंख, कच्छप और मकर जल की शुद्धता
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