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________________ १४ है जो प्राणिवर्ग और पर्यावरण को समन्वित स्वरूप प्रदान कर सके। धर्म के इसी प्राणि मात्र के लिए कल्याणकारी वास्तविक स्वरूप को जानने से पर्यावरण के साथ धर्म का नैसर्गिक सम्बन्ध स्वतः ज्ञात हो जाता है। पर्यावरण या समग्र प्रकृति एक दूसरे का पर्याय है। केवल नदी, जल, जंगल, पर्वत, पशु-पक्षी और वायु ही पर्यावरण नहीं हैं अपितु हमारी सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आदि समस्त परिस्थितियाँ भी पर्यावरण की परिधि से परिवेष्ठित हैं। के परि तथा आ उपसर्ग सहित वृञ् धातु से करणार्थक ल्युट् प्रत्यय के संयोजन से बना हुआ पर्यावरण शब्द प्राचीन साहित्य में नहीं मिलता है। यह आधुनिक युग में प्रकल्पित एक नया शब्द है इसका शाब्दिक अर्थ है- हमारे चारों ओर का वातावरण जिससे हम हुए हैं। पर्यावरण वह घेरा है जो मानव को चारों ओर से घेरे हुए है तथा उसके जीवन और क्रियाओं पर प्रभाव डालती है। इसमें मनुष्य के बाहर की समस्त घटक वस्तुएँ, स्थितियाँ तथा दशाएँ सम्मिलित हैं जो मानव के जीवन को प्रभावित करती हैं। पर्यावरण में वायुमण्डल, स्थलमण्डल और जलमण्डल के सभी भौतिक तथा रासायनिक तत्वों को समाविष्ट किया गया है। इस प्रकार पर्यावरण भौतिक तथा जैविक दोनों तत्वों से मिलकर बना है। जैविक पर्यावरण में समस्त जीव जगत् और सभी प्रकार के पौधे सम्मिलित हैं। भौतिक पर्यावरण में मृदा, जल, वायु, प्रकाश और ताप हैं। इनसे स्थलमण्डल, जलमण्डल और वायुमण्डल निर्मित होता है। वैदिक तथा परवर्ती प्राचीन वाड्मय में पर्यावरण संरक्षण विषय पर पर्याप्त सामग्री मिलती है। अतः यह प्रश्न उठता है कि उस प्राचीन साहित्य में पर्यावरण शब्द के स्थान पर कौन से शब्द का प्रयोग हुआ है और किन तत्वों को पर्यावरण का संघटक माना गया है अथर्ववेद में प्राप्त वर्णन के अनुसार पर्यावरण के संघटक तत्व तीन हैं- ३ जल, वायु तथा औषधियाँ। ये भूमि को घेरे हुए हैं और मानव मात्र को प्रसन्नता प्रदान करते हैं, अत: इन्हें पुरुरूपम् कहा गया है। प्रत्येक लोक को ये तत्व जीवनरक्षा के लिए दिये गये हैं। पर्यावरण शब्द व्यापक अर्थ की दृष्टि से भौतिक पर्यावरण और आध्यात्मिक पर्यावरण का बोधक है। पृथ्वी आदि तत्व भौतिक पर्यावरण के अन्तर्गत आते हैं और आध्यात्मिक पर्यावरण का पर्यवसान आत्मनिः श्रेयस में होता है। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि जीवसृष्टि और प्रकृति का परस्पर समन्वित सम्बन्ध ही पर्यावरण है। पर्यावरण की परिशुद्धि से ही आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक इन तीनों में समन्वय स्थापित रहता है। प्रस्तुत विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि धर्म का पर्यावरण से घनिष्ठ सम्बन्ध है। पर्यावरण के संरक्षण के बिना धर्म अधर्म में परिणत हो जाता है। B Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525049
Book TitleSramana 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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