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________________ जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण ___ छैल सिंह राठौड़ __भारत भूमि में उद्भावित और सुविकसित धर्मों में जैन धर्म का प्रमुख स्थान है। धर्म शब्द अत्यन्त गम्भीर और गुरुतर अर्थ का बोधक है। भारतीय मनीषियों ने अनेक व्युत्पत्तियों से इसके निगूढार्थ का प्रतिपादन किया है। "येन ध्रियते स धर्मः, धारयति इति धर्मः, धर्मों धारयते प्रजाः, धर्मो विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा, धरति विश्वम् इति धर्मः' इत्यादि व्युत्पत्तियों तथा धर्ममहिमा-बोधक वाक्यों से यह ध्वनित होता है कि विश्व के धारक शाश्वत सिद्धान्तों की समष्टि ही धर्म शब्द से व्यवहृत हुई है। तत्वद्रष्टा महर्षि कणाद ने धर्म की जो “यतोऽभ्युदयनि: श्रेयससिद्धिः स: धर्मः"१ यह परिभाषा प्रस्तुत की है वह धर्म के व्यापक और गम्भीर स्वरूप की अवबोधिका है। धर्म वह तत्व है जो लौकिक समुन्नति और आत्मकल्याण अर्थात् मोक्ष दोनों का ही साधक होता है। जैन धर्म और दर्शन के मौलिक विचारक काका साहेब कालेलकर ने धर्म के स्वरूप पर विचार करते हए कहा है-“धर्म की अनेक व्याख्याएँ की गयी हैं । मेरे विचार से धर्म की उत्तम व्याख्या यह है जीवनशुद्धि और समृद्धि की साधना जो दिखाये वह धर्म है।' इस कथन पर विचार करने से ऐसा प्रतीत होता है कि आचार्य कालेलकर ने यह धर्मलक्षण महर्षि कणाद द्वारा प्रस्तुत धर्मलक्षण के अनुसार प्रस्तुत किया है। धर्म के इसी व्यापक मूल स्वरूप को विभिन्न तत्वद्रष्टा आचार्यों और महापुरुषों ने स्वीकार करते हुए अपने-अपने दृष्टिकोण से कुछ विशिष्ट सिद्धान्तों का समावेश कर उपदेश दिया है और वह उनके अनुयायी समाज के धर्म के नाम से व्यवहत होता है। इस प्रकार मूलत: धर्म की एकस्वरूपता होने पर भी विभिन्न महापुरुषों तथा आचार्यों के अनुयायी समाजों के भेद से व्यवहार में अनेक धर्म प्रवृत्त हो जाते हैं। प्रत्येक धर्म में व्यक्ति और समाज के अथवा यह कहना उचित होगा कि सम्पूर्ण विश्व के कल्याण की कामना की जाती है। सच्चा धर्म वही है जो पिण्ड और ब्रह्माण्ड में अथवा जीव और अजीव में अथवा प्रकृति अथवा प्राणि जगत् में समन्वय स्थापित कर सके। आधुनिक युग की भाषा में यह कह सकते हैं कि सच्चा धर्म वह *द्वितीय पुरस्कार प्राप्त आलेख (ग्रुप- बी)। द्वारा- श्री माधव सिंह राठौड़, ९४३, कागल हाउस, गाँधीपुरा, गली सं० ५, बी. जे. एस. कालोनी, जोधपुर (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525049
Book TitleSramana 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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