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जैन पुराणों में वर्णित जैन संस्कारों का जैनेतर संस्कारों से तुलनात्मक अध्ययन : २१ ४४. चक्रलाभ संस्कार में निधियों और रत्नों की उपलब्धि होने पर चक्र की प्राप्ति
होती है और समस्त प्रजा द्वारा उनकी अभिषेक सहित पूजा की जाती है।९२ दिशाञ्जय संस्कार में चक्ररत्न को आगे कर समुद्र सहित समस्त दिशाओं
को विजित किया जाता है।९३ ४६. चक्राभिषेक संस्कार तब सम्पन्न किया जाता है जब भगवान् दिग्विजय पूर्ण
कर अपने नगर में प्रवेश करते हैं।२४ . ४७. साम्राज्य संस्कार चक्राभिषेक के बाद होता है जिसमें वह जीव इहलोक और
परलोक दोनों में ही समृद्धि को प्राप्त होता है।९५ ४८. निष्कान्ति संस्कार में बहुत दिनों तक प्रजापालन के बाद दीक्षा ग्रहणार्थ उद्यम
होते हैं। इस संस्कार में भगवान् अभिक्रमण करते हैं तथा केशलुंचन, पूजा
आदि होती है।९६ ४९. योगसम्मह संस्कार- ध्यान और ज्ञान के संयोग को योग कहते हैं तथा उस
योग से जो अतिशय तेज उत्पन्न होता है वह योगसम्मह कहलाता है।९७ ५०. आर्हन्त्य संस्कार - अद्भुत विभूतियों को धारण करने वाले उन भगवान् का
आर्हन्त्य नामक संस्कार सम्पन्न किया जाता है।९८ ५१. विहार संस्कार में धर्मचक्र को आगे कर भगवान् द्वारा विहार किया जाता है।९९ . ५२. योगत्याग संस्कार में विहार समाप्त कर समवसरण विघटित होती है।३०० ५३. अग्रनिर्वृत्ति संस्कार उनके लिए सम्पन्न होता है जिनका समस्त योगों का
निरोध हो चुका है, जो जिनों के स्वामी हैं, जिन्हें ईश्वरत्व की अवस्था मिल गयी है, जिनके अघातिया कर्म नष्ट हो चुके हैं, जो उर्ध्वगति को प्राप्त हुए हैं, और जो मोक्ष स्थान पर पहुँच गये हैं।०१।।
दीक्षान्वय संस्कार– इसके अन्तर्गत सम्पन्न होने वाले क्रियाओं का सम्बन्ध व्यक्ति के व्यक्तित्व और धार्मिक अभ्युदय से है। अणुव्रत तथा महाव्रत का पालन करना दीक्षा कहलाता है। दीक्षा से सम्बन्ध रखने वाली क्रियाएँ दीक्षान्वय संस्कार कहलाती हैं। मरण से निर्वाणपर्यन्त अड़तालीस प्रकार के दीक्षान्वय संस्कारों का उल्लेख है, जिसे सम्पन्न करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।०२ ये क्रमश: निम्नलिखित हैं१. अवतार संस्कार द्वारा मिथ्या तत्त्व से भ्रष्ट हुआ कोई भव्य पुरुष समीचीन
मार्ग ग्रहण करने के लिए सम्मुख होता है।०३ २. वृतलाभ संस्कार भव्य पुरुषों द्वारा गुरु को नमस्कार करते हुए व्रतों के समूह
को प्राप्त करके की जाती है।०४
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