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________________ ८ T/ जुलाई - दिसम्बर २००२ श्रमण/ जरासंध के भय से यादवों ने मथुरा से द्वारिका की ओर प्रस्थान किया तब कृष्ण की आयु लगभग २० वर्ष की थी और कृष्ण की कुल आयु १२५ वर्ष थी। जैन ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि मथुरा से पलायन के समय अरिष्टनेमि शिशु थे और उनकी आयु उस समय ४ वर्ष थी। ऐसा प्रतीत होता है कि अरिष्टनेमि की आयु भी १०० वर्ष या १२५ वर्ष से अधिक नहीं थी । राजीमति की दीक्षा उत्तराध्ययन की सुखबोधावृत्ति ५३ एवं वादिवेताल शान्तिसूरि रचित 'बृहद् वृत्ति' और मलधारी आचार्य हेमचन्द्र के भवभावना ४ के अनुसार अरिष्टनेमि के प्रथम वचन को सुनकर ही राजीमति ने दीक्षा ले ली थी। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के अनुसार गजसुकुमाल मुनि के मोक्ष जाने के बाद राजीमति नन्द की कन्या एकवाशा और यादवों की अनेक महिलाओं के साथ दीक्षा लेती है। जैन आगमों में राजीमति को एक चरित्रवाली, विदुषी महिला एवं परम साधक के रूप में चित्रित किया गया है जो रथनेमि जैसे प्रव्रजित श्रमण को भी प्रतिबोध देती है तथा अपने सभी कर्मों को नष्ट कर मुक्त होती है। भगवान् अरिष्टनेमि के विहार अरिष्टनेमि के विहार-सम्बन्धी उल्लेख आगमों में विस्तार से उपलब्ध नहीं हैं। अन्तकृद्ददशाङ्ग में उनका मुख्य रूप से द्वारिका पधारने का उल्लेख है। वे मलय जनपद की राजधानी भद्दिलपुर भी पधारे थे, ऐसा उल्लेख मिलता है आज यह गांव झारखण्ड के हजारीबाग जिले के भदिया नामक स्थान के रूप में जाना जाता है। आवश्यक नियुक्ति के अनुसार भगवान् अरिष्टनेमि ने अनार्य देशों में भी विहार किया था । ५५ जिस समय द्वारिका का दहन हुआ, उस समय भगवान् पल्हव नामक अनार्य देश में विचरण कर रहे थे। यह पल्हव भारत की सीमा में था या भारत की सीमा से बाहर था, यह अन्वेषणीय है। प्राचीन पार्थिया (वर्तमान ईरान) के एक भाग को पल्हव या पल्हण माना जाता है। इसके अतिरिक्त भगवान् अरिष्टनेमि के हस्तिकल्पपुर, कौसुम्बारण्य राजपुर, किरात, दक्षिणापथ ह्रीमानगिरि तथा रैवतगिरि ( गिरनार ) आदि विहार के मुख्य स्थल थे। ५६ आचार्य जिनसेन के अनुसार उन्होंने सौराष्ट्र, मत्स्य, लाट, विशाल, शूरसेन, पटच्चर, पाञ्चाल, कुशाग्र, अङ्ग, बंग तथा कलिंग आदि नाना देशों में विहार किया। भगवान् अरिष्टनेमि से समुद्रविजय, अक्षोम्य, स्तमित, सागर, हिमवान् आदि नौ दशार्हो तथा माता शिवा देवी और श्रीकृष्ण के अनेक राजकुमारों ने दीक्षा ग्रहण की। इसके अतिरिक्त उनसे दीक्षा प्राप्त करने वालों में गजसुकुमाल, थावच्चापुत्र तथा ढंढणमुनि, निषधकुमार, बलदेव तथा पाण्डव आदि हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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