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________________ तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि : ७ ज्ञान प्राप्त हुआ।३९ केवल ज्ञान का समय क्या था इस विषय में समवायाङ्ग,४० आवश्यकनियुक्ति,४१ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र २ तथा भवभावना ३ का संकेत सूर्योदय बेला की तरफ है जबकि कल्पसूत्र में आचार्य भद्रबाहु ने अमावस्या के दिन का पश्चिम भाग लिया है। आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण४ तथा आचार्य गुणभद्र ने उत्तरपुराण ने भगवान् अरिष्टनेमि का छद्मस्थ-काल ५६ दिन माना है और उनके केवल ज्ञान का दिन आश्विन शुक्ला प्रतिपदा माना है, परन्तु यह अन्तर श्वेताम्बर और दिगम्बर तिथि-सम्बन्धी मान्यताओं का भेद ही प्रतीत होता है। उन्होंने जिस स्थान पर दीक्षा ग्रहण की थी, केवल ज्ञान भी उन्हें उसी स्थान पर हुआ।४५ केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद भगवान् अरिष्टनेमि ने चतुर्विध संघ की स्थापना की और तीर्थङ्कर पद प्राप्त किया। समवायाङ्ग,४६ आवश्यकनियुक्ति,४७ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित,८ उत्तरपुराण आदि श्वेताम्बर तथा दिगम्बर-ग्रन्थों में भगवान् अरिष्टनेमि के ११ गण और ११ गणधरों का उल्लेख है जिनमें वरदत्त प्रमुख गणधर थे। अन्य गणधरों का विशेष परिचय नहीं मिलता। कल्पसूत्र में अरिष्टनेमि के १८ गण और १८ गणधरों का उल्लेख है, परन्तु यह अन्तर क्यों है इसका कोई संकेत उपलब्ध नहीं है। उनके गण-समुदाय में १८,००० श्रमणों, ४०,००० श्रमणियों तथा अनेकों श्रमणोपासक तथा श्रमणोपासिकाओं की सम्पदा थी। __आयु-- भगवान् अरिष्टनेमि की आयु क्या थी, इस सम्बन्ध में प्राप्त साहित्यिक साक्ष्य एकमत नहीं हैं। नियुक्ति, वृत्ति और त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के अनुसार रथनेमि ४०० वर्ष गृहस्थ आश्रम में रहे, १ वर्ष छद्मस्थ रहे और ५०० वर्ष केवली पर्याय में, इसप्रकार उनका ९०० वर्ष का आयुष्य था।५१ इसी प्रकार कौमारावस्था, छद्मस्थ अवस्था और केवली अवस्था का विभाग करके राजीमति ने भी उतना ही आयुष्य भोगा।५२ भगवान् अरिष्टनेमि ३०० वर्ष कुमार अवस्था में रहे, ७०० वर्ष छद्मस्थ और केवली अवस्था में व्यतीत कर कुल १००० वर्ष का आयुष्य भोगा। अब यदि उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में अरिष्टनेमि का आयुष्य देखें तो रथनेमि, जो अरिष्टनेमि के लघु भ्राता थे ४०० वर्ष गृहस्थ आश्रम में रहे, राजीमति भी गृहस्थ आश्रम में ४०० वर्ष रहीं जबकि अरिष्टनेमि ३०० वर्ष। साहित्यिक साक्ष्य से यह भी स्पष्ट है कि राजीमति और अरिष्टनेमि के निर्वाण में ५४ दिनों का अन्तर है। अब यदि इस उल्लेख को प्रामाणिक माना जाय तो इसका अर्थ यह है कि राजीमति अरिष्टनेमि २०० वर्ष पश्चात् दीक्षित हुईं; किन्तु अरिष्टनेमि कैवल्य प्राप्ति के बाद राजीमति का २०० वर्ष तक दीक्षित न होना तथा गृहस्थ आश्रम में रहना एक ऐसी पहेली है जिसका कोई स्पष्ट हल नजर नहीं आता। वर्तमान तीर्थङ्करों में केवल पार्श्वनाथ एवं महावीर की आयु सत्य ऐतिहासिक तथ्य के रूप में वर्णित है जो क्रमश: १०० और ७२ वर्ष मानी गयी है। शेष तीर्थङ्करों के आयु परिमाण में कल्पना है, परन्तु वसुदेव कृष्ण के नेतृत्व में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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