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________________ तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि : ९ परिनिर्वाण सात सौ वर्षों तक श्रमण जीवन में रहने के बाद ग्रीष्म ऋतु के चतुर्थ मास, आषाढ़ मास की शुक्ला अष्टमी के दिन रैवतक शैल शिखर पर अन्य ५३६ अनगारों के साथ जलरहित मासिक तप कर चित्रा नक्षत्र में सभी कर्मों को नष्ट कर भगवान् अरिष्टनेमि कालगत हुए। धर्मदेशना __ भगवान् अरिष्टनेमि ने ऋषभदेव, भगवान् महावीर की तरह पञ्चयाम जैसे किसी दार्शनिक-सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं किया, परन्तु उनके उपदेशों में अहिंसा, अपरिग्रह आदि सिद्धान्तों का सम्यक् समावेश था। यह माना जाता है कि भगवान् ऋषभदेव एवं महावीर ने पञ्चयाम का उपदेश दिया शेष सभी तीर्थङ्करों ने चातुर्याम का। वे निवृत्ति प्रधान लोकोत्तर महापुरुष थे और जातिगत आकर्षणों एवं संसार के भोग-विलास से सर्वथा ऊपर थे। उनके युग का गम्भीरतापूर्वक पर्यालोचन करने पर यह स्पष्ट होता है कि उस समय क्षत्रियों में मांस भक्षण एवं मदिरापान आदि व्यसन प्रचलित हो गये थे। उनके विवाह के अवसर पर पशुओं को एकत्रित किया जाना, मदिरोन्मत्त यदुकुमारों के आचरण से द्वारिका का दहन होना इसी तथ्य की ओर संकेत करते हैं। विवाह किये बिना उनका लौटना समग्र क्षत्रिय जाति के पापों का प्रायश्चित्त था। दीक्षित होने के पश्चात् उन्होंने उत्कृष्ट साधना द्वारा कैवल्य प्राप्त कर संसार को श्रेयोमार्ग प्रदर्शित कर शाश्वत सिद्धि प्राप्त की। सन्दर्भ * * १. समवायाङ्ग, १५७. २. Epigraphica Indica, Vol. 1, p. 389. ३. ऋग्वेद, १-१४/८९/६, १/२४/१८०/१०, ३/४/५३/१७, १०/१२. पं० कैलाशचन्द जैन, जैन साहित्य का इतिहास (पूर्वपीठिका), पृ० १७०. ५. छान्दोग्योपनिषद्, ३/१७/६. अन्तकृत्दशाङ्ग, वर्ग ५, अ. १. ७. धर्मानन्द कौशाम्बी, भारतीय संस्कृति और अहिंसा, पृ० ५७. ८. ऋग्वेद, १०/१२/१७८/१. ९. यजुर्वेद, २५/१९. १०. सामवेद, ३/९. ११. ऋग्वेद, १/१/१६. Jain Education International ial For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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