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________________ नाट्यशास्त्र एवम् अभिनवभारती में शान्त रस : ७५ इस प्रकार हर्ष के नागानन्द नाटक में दया वीर रस के अङ्गी रस के रूप में चित्रण होते हुए भी शान्त आदि अन्य रस इसके अङ्ग रस हैं। प्रथमाङ्क में शान्त और शृङ्गार के विरोध का— 'अहो गीतम्, अहो वादितम्।।' इत्यादि से मध्य में अद्भुत रस का सञ्चार होने से विरोध परिहार हो गया है। 'उदात्तता' गुण नायक में उत्कृष्ट रूप में विद्यमान है तथा 'प्रशान्तता' उसका सामान्य गुण है। अतएव इस नाटक में शान्त रस अङ्गी न होकर गौण रस है। अध्यात्मकल्पद्रुम, सङ्कल्पसूर्योदय, शारिपुत्रप्रकरण, प्रबोधचन्द्रोदय इत्यादि नाट्यकृतियों में नाट्यशास्त्र एवम् अभिनवभारती में वर्णित शान्त रस का अङ्गी रस के रूप में चित्रण है। इस प्रकार की नाट्यकृतियों और नागानन्द के शान्त रस के अभिनेय होने के दर्शाये गये उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि नाट्य में शान्त रस पूर्ण अभिनेय रस के रूप में स्वीकार्य है। वर्तमान विश्व अशान्ति की परिस्थितियों में 'शान्त रस' की प्रधानता वाले नाट्यकृतियों की आवश्यकता है ताकि मानव मन हिंसा वृत्ति से विरत हो। दृश्यकाव्य में अभिनय को देख व सुनकर दृश्य-श्रव्य होने के कारण मानव मनोविज्ञान के फलस्वरूप दृष्टा रङ्गमञ्च पर उपस्थित पात्र से अपना तादात्म्य स्थापित करके देखने लगता है और प्रवचनों, पुस्तकों आदि के माध्यम से प्रस्तुत की गयी सत्यता को भी उतने प्रभावशाली ढंग से समझना नहीं चाहता है, जितना प्रत्यक्ष में। दृश्यमान् काव्य का मञ्चीकरण पात्रों के माध्यम से मन की कोमल भावनाओं को उद्वेलित करने व इसके फलस्वरूप मन परिवर्तन करने में सक्षम है। . __अत: विश्व-शान्ति हेतु प्रयासरत प्रत्येक प्राणी का यह कर्तव्य है कि वह इस प्रकार के साहित्य के मञ्चन और अवलोकन में रुचि ले। यदि हम रचनाकार हैं और भारत की भावी पीढ़ी की शान्ति की कामना रखते हैं तो हमारा यह उत्तरदायित्व बन जाता है कि नागानन्द की भाँति आधुनिकता से पूर्ण विलासी जीवन को दिखाकर शान्त रस का सञ्चार करने वाली नश्वर जीवन की सत्यता को प्रस्तुत करके मन परिवर्तन का उदाहरण विविध रूपों में प्रस्तुत किया जाय ताकि पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित, भारतीय संस्कृति से पूर्ण पराङ्गमुख, जीवन के अन्त समय की सत्यता से परे रहने वाले भारतीयजनों की विचारधारा में परिवर्तन सम्भव हो सके और वह हिंसा वृत्ति से विमुख होकर अहिंसा, आत्मशुद्धि, आत्मचिन्तन, तप, स्वाध्याय, त्याग, बलिदान आदि जीवनमूल्यों की ओर उन्मुख हों व ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करें कि गरुड सदृश उच्छृङ्खल, क्रूर व हिंसक व्यवहार करने वाले, दूसरों की हत्या से अकारण आनन्दित होने वाले विश्व भर के आतङ्कवादियों के लिए अनूठी हृदय परिवर्तन की भूमिका निभा सकें। सदा से शान्ति की खोज में भारत की ओर दृष्टि रखने वाले पाश्चात्य शान्ति प्रेमियों को उपर्युक्त आनुपातिक दृष्टान्तों के उपलब्ध होने पर यहाँ के वातावरण से निराशा हाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525046
Book TitleSramana 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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