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________________ पादलिप्तसूरि रचित – 'तरंगवईकहा' (तरंगवतीकथा) वेदप्रकाश गर्ग कथा-साहित्य चिरन्तनकाल से लोकरञ्जन एवं मनोरञ्जन का माध्यम रहा है, अत: इसका प्रवाह चिरकाल से सतत् प्रवहमान है। इस विशाल भारतीय कथा-साहित्य में जैन-कथा-ग्रन्थों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह जैन कथा-साहित्य अत्यन्त समृद्ध है। जैन-साहित्य में कथा की परम्परा अति प्राचीन है और वह प्राकृत, संस्कृत से होती हुई अपभ्रंश तक आयी है। जैनागमों में जहाँ छोटी-छोटी अनेक प्रकार की कहानियाँ दृष्टिगत होती हैं, वहाँ जैनागमों के नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि एवं टीका-ग्रन्थों में तो अपेक्षाकृत विकसित कथा-साहित्य के दर्शन होते हैं। जैन कथाकारों ने अनेक पृथक् - कथा ग्रन्थों का भी बड़ी संख्या में प्रणयन किया है। . जैन रचनाकारों ने जनसाधारण में प्रचारात्मक दृष्टि से नानाप्रकार की मनोरञ्जक कथाओं का निर्माण किया। ये कथा-ग्रन्थ संस्कृत के वासवदत्ता, दशकुमारचरित आदि लौकिक-कथाओं के समान ही हैं। उनमें ऐतिहासिक, अनैतिहासिक, धार्मिक एवं लौकिक आदि कई प्रकार की कथाएँ समाविष्ट हैं। इनमें किसी लोकप्रसिद्ध पात्र को कथा का केन्द्र बनाकर वीर व शृङ्गारादि रसों का आस्वादन कराता हुआ लेखक सबका उपसंहार वैराग्य एवं शम (शान्त रस) में कर देता है। इनमें पूर्व भवों की अनेक अद्भुत कथाएँ और अवान्तर कथाओं का ताना-बाना बुना रहता है अर्थात् जैनों द्वारा पात्रों के आधार से दिव्य, मानुष एवं मिश्र कथाएँ लिखी गयी हैं। उक्त कथाओं का उद्देश्य जैन-विचार रूप में व्रत, उपवास, दान, पर्व, तीर्थ, तथा कर्मवाद एवं संयम आदि के माहात्म्य को प्रकट करना है। इस दृष्टि से यद्यपि वे आदर्शोन्मुखी हैं; किन्तु फिर भी जीवन के यथार्थ धरातल पर टिकी हुई हैं और उनमें सामाजिक जीवन की विविध भंगिमाओं के दर्शन होते हैं। कथानक की दृष्टि से उक्त कथाओं का क्षेत्र बड़ा व्यापक है। उनमें सभी प्रकार की कथाओं को स्थान मिला है, जो घटना बहुल हैं। जैन-कथाओं की परम्परा में सिद्धर्षिकृत उपमितिभवप्रपञ्चकथा, धनपालकृत तिलकमञ्जरी, पादलिप्तकृत तरंगवती, संघदासगणिकृत वसुदेवहिण्डी, हरिभद्रकृत समराइच्चकहा और उद्योतनसूरिकृत कुवलयमालाकहा आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। प्रस्तुत लेख में तरंगवईकहा (तरंगवतीकथा) के सम्बन्ध में चर्चा है। *. १४ खटीकान, मुजफ्फरनगर, उ०प्र०, २५१००२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525046
Book TitleSramana 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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