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जैन संस्कृति में पर्यावरण-चेतना : ६७ प्रारम्भ से ही ध्यान दिया है। इसीलिए उन्होंने पर्यावरण की शुद्धता के लिए वनस्पतियों को सुरक्षित रखना अनिवार्य समझा। भले ही उनके चिन्तन में प्राणिवध या हिंसा की दृष्टि से वनस्पति के कृन्तन-छेदन आदि कार्य सर्वथानिषिद्ध थे, परन्तु इसके मूल में पर्यावरण की चेतना अन्तर्निहित रही।
जैन-संस्कृति में पर्यावरण-चेतना की दृष्टि से चैत्यवृक्षों को पर्याप्त मूल्य दिया गया है। अशोक, सप्तपर्ण, चम्पक और आम्र, ये चार वृक्ष चैत्यवृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित हैं। जैनदर्शन के अन्तर्गत जीव-तत्त्व में जलकाय और वायुकाय की गणना से स्पष्ट है कि जैन चिन्तकों का ध्यान पर्यावरण के विशिष्ट तत्त्व वनस्पति के साथ ही जल और वायु की ओर भी था। वे पर्यावरण की विशुद्धि के लिए उसे जल-प्रदूषण और वायु-प्रदूषण से विमुक्त रखने के पक्षपाती थे। वायु-प्रदूषण से ही ध्वनि-प्रदूषण को भी अभिव्यंजना होती है।
इस प्रकार, पर्यावरण की रक्षा और उसकी विशुद्धि की दृष्टि से जैन-संस्कृति में वन और वनस्पति के महत्त्व की विशद् चर्चा मिलती है। वनस्पति, पशु-पक्षी एवं मनुष्य एक ही चेतना के रूप-भेद हैं। यहाँ तक कि समष्टयात्मक चेतना के रूपभेद की धारणा के आधार पर संघदासगणि ने जैनदर्शन की मान्यता के परिप्रेक्ष्य में एकेन्द्रिय जीव के शरीर रूप वनस्पति में जीवसिद्धि का साग्रह वर्णन किया है। अतएव वनस्पति के जीव होने के कारण ही जैनधर्म में सर्वप्रकार की कच्ची वनस्पति की अभक्ष्यता में पर्यावरण की विविध प्रदूषणों से प्ररक्षा
और वनस्पतियों अथवा पेड़-पौधों की अस्तित्व-रक्षा का भाव निहित है। कहना न होगा कि जैनशास्त्र या तदनुवर्ती जैन संस्कृति में पर्यावरण के मूलभूत वन और वनस्पति के सम्बन्ध में बहुत गम्भीरता से वैचारिक विवेचन है, जो अपने आपमें एक स्वतन्त्र वनस्पतिशास्त्र की महिमा का बखान करता है। इस सन्दर्भ में विशेष ज्ञातव्य के लिए गोम्मटसार (नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती), सर्वार्थसिद्धि (पूज्यपाद), षट्खण्डागम (पुष्पदंत-भूतबलि) की धवला टीका (वीरसेन), राजवार्तिक (अकलंकदेव), लाटीसंहिता (राजमल्ल) आदि ग्रन्थों का अनुशीलन अपेक्षित है।
. अहिंसावादी जैनधर्मी श्रमणों और श्रावकों का आचरण पर्यावरण-संरक्षण के अनुकूल है, जिसके उदात्त और विस्तृत वर्णन में समग्र जैन वाङ्मय प्रखर भाव से मुखरित है, विशेषतया जैन-साहित्य और दर्शन में पर्यावरण-चेतना के चित्रण में उपस्थापित वन और वनस्पति के बहुकाशीय आयामों का समुद्भावन हुआ है।
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