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________________ जैन संस्कृति में पर्यावरण-चेतना : ६५ रीति से सेवा और रक्षा करनी चाहिए। भारतीय संस्कृति में वृक्षपूजा को अतिशय महत्त्व दिया गया है। लोकजीवन में पीपल और बरगद तो विशिष्ट रूप से पूजित हैं। विवाह-संस्कार के अवसर पर आम-महुआ ब्याहने की भी चिराचरित प्रथा मिलती है। 'धात्रनवमी' का नामकरण उस तिथि को धात्रीवृक्ष (आँवला का पेड़) पूजने की विशेष प्रथा को संकेतित करता है, तो 'वटसावित्रीव्रत' (ज्येष्ठ अमावस्या) के दिन भारतीय सधवा स्त्रियाँ बरगद को पति का प्रतिनिधि मानकर उसकी पूजा करती हैं। वैदिक मतानुसार पीपल या अश्वत्थ तो साक्षात् त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु या कृष्ण और महेश) का ही प्रतिरूप है। मूलतोब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे। अग्रतः शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नमः।। यहाँ अश्वत्थ को प्रधान वृक्ष मानकर उपलक्षण रूप में अश्वत्थ का नाम लिया गया है। सभी वृक्षों की स्थिति या महिमा अश्वत्थ जैसी ही है। विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्यवैदिक विज्ञान और भारतीय संस्कृति, म०म० पं० गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी, पृ० २४७. गीता में कृष्ण ने कहा भी है कि 'अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम्' (१०.२६) अर्थात् वृक्षों में यदि कृष्ण की व्यापकता को माना जाय, तो वह अश्वत्थ हैं। यहाँ तक कि अव्ययात्मा अश्वत्थ वृक्ष में ही समस्त संसार के आवासित रहने की भारतीय मिथक चेतना या परिकल्पना का भी अपना मूल्य है। वट-वृक्ष की पूजा से सावित्री-सत्यवान् की प्रसिद्ध पौराणिक आदर्शकथा के जुड़े रहने की बात सर्वविदित है। सोमवारी अमावस्या को अश्वत्थ-प्रदक्षिणा की लोकप्रथा भी भारतीय जीवन की धर्मनिष्ठ संस्कृति को सूचित करती है। बोधिवृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञानलाभ होने के कारण बौद्धों में अश्वत्थ की पूज्यातिशयता सर्वस्वीकृत है। सन्धुघाटी सभ्यता में अश्वत्थ वृक्ष का महत्त्व वहाँ से प्राप्त अनेक मुद्राओं तथा पात्रखण्डों पर अंकित वृक्षों से प्रकट होता है। भारत के प्राचीन साहित्य में वृक्षोत्सव की गणना अनेक लोकप्रचलित उत्सवों में की गयी है, जिनमें कामिनियाँ विविध क्रीड़ाएँ करती थीं। शाल-भंजिका-क्रीड़ा में इसके साक्ष्य उपलब्ध हैं। शालवन की चर्चा जैन और बौद्ध साहित्य में समान भाव से मिलती है। भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा वसुदेवहिण्डी में वृक्षों के वर्णन-क्रम में कथाकार आचार्य संघदासगणि ने अपने सूक्ष्मतम प्राकृतिक और शास्त्र-गम्भीर अध्ययन का परिचय दिया है। वसुदेवहिण्डी में उपलब्ध वनों और वनस्पतियों की बहुवर्णी उद्भावनाएँ पर्यावरण-चेतना के अध्ययन की दृष्टि से अपना पार्यन्तिक महत्त्व रखती हैं। वसुदेवहिण्डी में संघदासगणि द्वारा उपन्यस्त वृक्ष-वर्णनों में वृक्षों को पूजनीयता और महत्ता का विन्यास तो हआ ही है, पर्यावरण-चेतना भी समाहित हो गयी है। कथाकार ने पर्यावरण के महत्त्व की दृष्टि से उपयोगी वृक्षों में शाल, सहकार, तिलक, कुरबक, शल्लकी, चम्पक, अशोक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525046
Book TitleSramana 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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