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________________ प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन : ५५ ज्ञान से दीक्षा, सामायिक व्रतोपस्थापना, श्रुत सम्बन्धित उद्देश्य समुदेश की अनुज्ञा, गण का आरोपण, दिशा की अनुज्ञा तथा क्षेत्र से निर्गमन और प्रवेश आदि कार्य जिस तिथि, करण, नक्षत्र, मुहूर्त और योग में करने के लिये निर्देश जिस अध्ययन में है, वह गणिविद्या है।११ प्रस्तुत ग्रन्थ में दिवस, तिथि, नक्षत्र, करण, ग्रह, मुहूर्त, शकुनबल, लग्नबल और निमित्तबल-इन नौ विषयों का विस्तारपूर्वक निरूपण किया गया है। यह प्रकीर्णक मूलरूप में बाबू धनपत सिंह-मुर्शिदाबाद, बालाभाई ककलभाई-अहमदाबाद, आगमोदय समिति, हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला तथा महावीर जैन विद्यालय से मूल, हेम्बर्ग से संस्कृत और आगम संस्थान उदयपुर से हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित है। २७- ऋषिभाषित- प्रस्तुत प्रकीर्णक ४५ अध्ययनों में विभक्त है। इन पैंतालिस अध्यायों में से प्रत्येक में एक ऋषि का उपदेश सङ्कलित है। इस प्रकार यह ग्रन्थ पैंतालीस ऋषियों के उपदेशों का सङ्कलन है। जिस अध्याय में जिस ऋषि का उपदेश है वह अध्याय उन्हीं के नाम से है। ये पैंतालीस अध्याय या ऋषि निम्न हैं (१) देवर्षि नारद, (२) बज्जीयपुत्त (वात्सीय पुत्र), (३) असितदेवल, (४) अंगिरस भारद्वाज, (५) पुष्पशाल पुत्र, (६) बल्कलचीरी, (७) कुम्भापुत्र, (८) केतलीपुत्र, (९) महाकश्यप, (१०) तेतलीपुत्र, (११) मंखलिपुत्र, (१२) याज्ञवल्क्य, (१३) मेतेज्ज भयालि, (१४) बाहुक, (१५) मधुरायन, (१६) शोर्यायण, (१७) विदुर, (१८) वारिषेणकृष्ण, (१९) आरियायन, (२०) उत्कट, (२१) गाथापतिपुत्र तरुण, (२२) गर्दभालि, (२३) रामपुत्र, (२४) हरिगिरि, (२५) अम्बड परिव्राजक, (२६) मातङ्ग, (२७) वास्तव, (२८) आर्द्रक, (२९) वर्द्धमान, (३०) वायु, (३१) अर्हत्पार्श्व, (३२) पिंग, (३३) महाशालपुत्र अरुण, (३४) ऋषिगिरि, (३५) उद्दालक, (३६) नारायण, (३७) श्रीगिरि, (३८) सारिपुत्र, (३०) संजय ऋषि, (४०) द्वैपायन ऋषि, (४१) इन्द्रनाग, (४२) सोम, (४३) यम, (४४) वरुण और (४५) वैश्रमण। प्रस्तुत प्रकीर्णक प्राचीनतम है। इसका नाम निर्देश समवायाङ्ग में भी प्राप्त होता है। अब तक इसके प्रकाशित संस्करण हैं- महावीर जैन विद्यालय एवं ऋषभदेव केसरीमल, रतलाम से मूल तथा लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद से संस्कृत, अंग्रेजी तथा सुधर्मज्ञान मन्दिर, बम्बई एवं प्राकृत भारती, जयपुर से हिन्दी अनुवाद के साथ। २८- द्वीपसागरप्रज्ञप्ति- प्रस्तुत प्रकीर्णक में २२५ गाथाएँ हैं। इसके कर्ता अज्ञात हैं। इसमें मनुष्य क्षेत्र अर्थात् ढाई द्वीप के आगे के द्वीप एवं सागरों की संरचना का वर्णन किया गया है। इसमें मानुषोत्तर पर्वत, नलिनोदक आदि सागर, नन्दीश्वर द्वीप, अंजन पर्वत, दधिमुख पर्वत, रतिकर पर्वत, कुण्डलद्वीप, कुण्डल पर्वत, कुण्डल समुद्र, रूचक द्वीप, रूचक नग, रूचक नग के कूट, दिशा कुमारियां एवम् उनके स्थान, दिग्गजेन्द्र, जम्बूद्वीप आदि द्वीप और लवण समुद्र आदि समुद्रों के अधिपति देव, तेगिच्छी पर्वत एवं चमरचंचा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525046
Book TitleSramana 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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