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________________ ५४ : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक नन्दीसूत्र और पाक्षिकसूत्र में प्राप्त होता है। इसमें कुल ३११ गाथाएँ हैं। ग्रन्थ का प्रारम्भ तीर्थङ्कर ऋषभ से लेकर महावीर तक की स्तुति से किया गया है। तत्पश्चात बत्तीस देवेन्द्रों का क्रमशः विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। इनमें असुरकुमार, नागकुमार, सुवर्णकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, वायुकुमार, स्तनितकुमार, विद्युतकुमार और अग्निकुमार- दस भवनपतिदेवों, चमरेन्द्र, धरणेन्द्र आदि बीस भवनपति इन्द्रों का नामोल्लेख है। तत्पश्चात् इनकी स्थिति, आयु, भवन संख्या एवं आवास आदि का निरूपण है। इसके पश्चात् वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों, वैमानिकों एवं अन्त में सिद्धों का विस्तार से वर्णन है। इसके संस्करण धनपतसिंह बाबू-मुर्शिदाबाद, बालाभाई ककलभाई-अहमदाबाद, आगमोदय समिति, हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, महावीर जैन विद्यालय से मूल एवं आगम संस्थान उदयपुर से हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित है। - २४. तन्दुलवैचारिक- यह प्रकीर्णक गद्य-पद्य मिश्रित है। इसमें सूत्रों और गाथाओं की कुल संख्या १७७ है। इसके गद्य भाग भगवतीसूत्र से भी लिये गये हैं। इसका उल्लेख उत्कालिक सूत्र के अन्तर्गत है। तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक में मुख्य रूप से मानव जीवन के सभी पक्षों- गर्भावस्था, मानव शरीर रचना, उसकी सौ वर्ष की आयु के दस विभाग (१) बाला, (२) क्रीड़ा, (३) मन्दा, (४) बला, (५) प्रज्ञा, (६) हायणी, (७) प्रपञ्चा, (८) प्रारभारा, (९) मुन्मुखी और (१०) शायनी, उनमें होने वाली शारीरिक स्थितियाँ एवं उसके आहार आदि के बारे में विस्तृत विवेचन किया गया है। स्त्रियों के दुर्गुणों को प्रतिपादित करने के उपरान्त अन्त में धर्म के माहात्म्य को स्थापित किया गया है। यह ग्रन्थ धनपत सिंह-मुर्शिदाबाद, बालाभाई ककलभाई- अहमदाबाद, आगमोदय समिति, हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला एवं महावीर जैन विद्यालय- बम्बई से मूल रूप में एवं देवचन्द्र लालभाई फण्ड से संस्कृत, सेठिया पारमर्थिक संस्था-बीकानेर से संस्कृत, हिन्दी; हेम्बर्ग से संस्कृत एवं आगम संस्थान, उदयपुर से हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित है। २५- चन्द्रकवेध्यक- इसमें १७५ गाथाएँ हैं। जैसाकि इसके नाम से स्पष्ट है कि इस ग्रन्थ में आचार के जो नियम बताये गये हैं उनका पालन कर पाना चन्द्रकवेध (राध-वेध) के समान ही कठिन है। जिस प्रकार प्रवीण धनुर्धारी यन्त्र में फिरती पुतली की आँख भेदने में समर्थ है वैसे ही अप्रमत्त साधक दुर्गति को दूर हटा देता है। इस ग्रन्थ के कर्ता अज्ञात हैं। इसके निम्नलिखित प्रकाशित संस्करण हैं-- बाबू धनपत सिंह-मुर्शिदाबाद, हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, महावीर जैन विद्यालय से मूल, केसरबाई ज्ञानमन्दिर, पाटण से संस्कृत, पेरिस से अंग्रेजी, कलापूर्णसूरि से गुजराती एवं आगम संस्थान, उदयपुर से हिन्दी अनुवाद के साथ। २६- गणिविद्या- इसमें ८६ गाथाएँ हैं। इसके रचनाकार अज्ञात हैं। इस प्रकीर्णक का परिचय नन्दीसूत्रचूंर्णि में इस प्रकार है- गण अर्थात् बाल और वृद्ध मुनियों का गच्छ; वह गण जिसके नियन्त्रण में है वह गणि; विद्या का अर्थ है ज्ञान। ज्योतिष-निमित्त विषय के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525046
Book TitleSramana 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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