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________________ हिन्दी काव्य परम्परा में अपभ्रंश महाकाव्यों का महत्त्व : ३५ (४) साहित्यिक रूढ़ियों का भी किसी-किसी ने पालन किया है। (५) प्रबन्ध-संघटना में भी कहीं-कहीं साम्य है। (६) लगभग सभी सूफी एवं प्रेमाख्यानक काव्य चौपाई दोहायुक्त शैली में लिखे गये हैं, जो अपभ्रंश की कडवक शैली का परवर्ती रूप है। (७) देशज शब्दों, लोकोक्तियों, मुहावरों आदि का प्रचुर प्रयोग दोनों में मिलता है। लोकजीवन की अनेक बातों में समानता होने से दोनों में बहुत कम अन्तर दिखायी पड़ता है। सूफी काव्य रचयिताओं ने अधिकांश दोहा-चौपाई के क्रम से काव्य-रचना की है तथा चौपाइयों के क्रम में विशेष कर पाँच चौपाइयों से लेकर सात या नौ तक के अन्तर में दोहा रखा है। मंझनकृत मधुमालती, जानकवि विरचित रतनमंजरी और नूरमुहम्मदकृत इन्द्रवती में पाँच अर्धालियों के बाद एक दोहे का क्रम मिलता है। इसी प्रकार उसमान रचित चित्रावली में, कासिमशाहकृत हंसजवाहिर में तथा कवि नसीरकृत प्रेमदर्पण में सात अर्धालियों के अनन्तर एक दोहे का क्रम दृष्टिगोचर होता है और हुसेनअली रचित पुहुमवती में तथा कवि शेख निसारकृत यूसुफजुलेखा में नौ अर्धालियों के पश्चात् एक दोहे के क्रम से रचना हुई है; किन्तु जानकविकृत कामलता में चौपाई छन्द ही मिलता है। अपभ्रंश के कथाकाव्यों में . सामान्यत: चार पद्धड़िया छन्द से लेकर पन्द्रह, सोलह तथा किसी में बीस छन्द और द्विपदी या तत्सम किसी अन्य छन्द-योजना का क्रम देखा जाता है; किन्तु अधिकतर पाँच या छह पद्धड़िया छन्द के बाद द्विपदी का क्रम प्राप्त होता है अतएव रचना-बन्ध की यह शैली निश्चित ही अपभ्रंश से परम्परा के रूप में हिन्दी-प्रबन्धकाव्यों को प्राप्त हुई जिसका परवर्ती रूप हमें जायसी के पद्मावत और रामचरितमानस में लक्षित होता है। इसी प्रकार चौपाई बन्ध की स्वतन्त्र शैली अपभ्रंश से ही हिन्दी को मिली है। कवि रल्हकृत जिनदत्तचउपई लगभग छह सौ चौपाइयों में निबद्ध रचना है। सम्पूर्ण रचना चौपाइयों में लिखी हुई मिलती है, जो अपभ्रंश के कथाकाव्य के अन्तर्गत परिगणित है। शैली की भाँति सूफी एवं प्रेमाख्यानक काव्यों पर अपभ्रंश के प्रबन्धकाव्यों में वर्णित छन्दों का प्रभाव देखा जाता है। स्पष्ट ही सत्यवतीकथा, मृगावती, नुरूक चन्दा, मैनासत्त, छिताईचरित, मधुमालती आदि प्रबन्धकाव्य चौपाई और दोहा में लिखे गये हैं। इसी प्रकार मधुमालती, चित्रावली, पुहुपवरिषा, रतनमंजरी, कॅवलावती, लैला-मजनू, कलावती, हंसजवाहिर, इन्द्रावती, अनुराग, बाँसुरी, पुहुपावती, युसुफजुलेखा, भाषाप्रेमरस तथा प्रेमदर्पण आदि में चौपाई-दोहा की योजना मिलती है। पद्मावत और रामचरितमानस तो सर्वविदित ही है। वस्तुत: अपभ्रंश के कथाकाव्यों में पद्धड़िया छन्द के साथ द्विपदी या उसके आकार का अथवा अन्य कोई छन्द प्रयुक्त हो सकता था; किन्तु साधारणतया द्विपदी दोहा या धात्ता छन्द का प्रयोग मिलता है अतएव अनुराग बाँसुरी में भी चौपाइयों के साथ बरवै Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525046
Book TitleSramana 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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