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१२ : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक किये गये उपसर्ग पर धरणेन्द्र एवं पद्मावती द्वारा सहस्रफण धारण कर भगवान् की भक्ति कर उपसर्ग से रक्षा की गयी, वही स्थान अहिच्छत्रा कहलाया। उस स्थान का इतिहास भंवरलालजी नाहटा ने लिखा तथा पाञ्चाल शोध संस्थान ५२/१६ शक्करपट्टी, कानपुर से यह प्रकाशित हुआ।
४०. खरतरगच्छ के प्रतिबोधित गोत्र और जातियाँ- खरतरगच्छाचार्यों द्वारा प्रतिबोध देकर समय-समय पर अनेक जातियों को सम्यक् मार्ग पर आरूढ़ किया गया। नाहटाद्वय के इस ग्रन्थ का प्रकाशन श्रीजिनदत्तसूरि सेवा संघ, ४ मीर बोहारघाट स्ट्रीट, कोलकाता-७ से सं० २०३० में हुआ।
उपरोक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त छोटी-बड़ी अन्य कृतियाँ भी हैं जिनका नामोल्लेख करके हमें इस लेख को विराम देना चाहिये
४१. राजगृह, ४२. जोगीपहाड़ी और पूर्व भारत के जैन तीर्थ व मन्दिर, ४३. उदारता अपनाइये, ४६. दीवानसाहब सर सिरेमलजी बाफना, ४७. विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि, ४८. जीवदयाप्रकरणकाव्यत्रयो, ४९. सहजानन्दसंकीर्तन, ५०. महातीर्थ पावापुरी, ५१. श्रीजिनदत्तसूरि सेवा संघ स्मारिका (अमरावती), ५२. श्रीजिनदत्तसूरि सेवा संघ स्मारिका (बिलाडा), ५३. रत्नपरीक्षादिसप्तग्रन्थसंग्रह, ५४. चम्पापुरी, ५५. जैन कथा संचय, भाग-१,२, ५६. ज्ञानसार ग्रन्थावली, ५७. सहजानन्द सुधा, ५८. युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिचरित्र, ५९. चार प्रत्येक बुद्ध, ६०. निह्नववाद, ६१. जैसलमेर के कलापूर्ण जैन मन्दिर, ६२. अनुभूति की आवाज, ६३. आत्मसिद्धि, ६४. आत्मद्रष्टा मातुश्री धनदेवीजी, ६५. शाम्बप्रद्युम्नकथा, ६६. खरतरगच्छ दीक्षा नन्दी सूची, ६७. खरतरगच्छ का इतिहास, ६८. कान्हड़ कठियारा की चौपाई. ६९. थावच्चापुत्र ऋषिचौपाई, ७०. ढोलामारूरा दूहा (अ.प्र.), ७१. सागर सेठ चौपाई (अ.प्र.), ७२. मन्त्रीश्वर कर्मचन्द्रवंश का इतिहास (अ.प्र.), ७३. आगरे के लोढ़ों का सम्मेतशिखर संघ वर्णन (अ.प्र.), ७४. विज्ञप्तिपत्रसंग्रह (अ.प्र.), ७५. महातीर्थ सम्मेतशिखर (अ.प्र.), ७६. सप्तस्मरण आदि हिन्दी पद्यानुवाद (अ.प्र.), ७७. छाजेड़ गोत्र का इतिहास (अ.प्र.), ७८. अष्टापद का इतिहास (अ.प्र.)
__उपरोक्त ग्रन्थों के लेखन/सम्पादन के अलावा आपके लगभग सहस्राधिक लेख अगरचन्दजी नाहटा के साथ तथा स्वतन्त्र रूप से प्रकाशित हो चुके हैं। अपने आप में एक-एक लेख महाप्रबन्ध हैं। ये लेख लगभग ४०० विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।
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