SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५. जैनागम में भारतीय शिक्षा के मूल्य जो दोषों से कलंकित नहीं है। ६. जो अत्यधिक रस - लोलुप नहीं है । ७. जो बहुत क्रोध नहीं करता और ८. जो हमेशा सत्य में अनुरक्त रहता है। इस प्रकार की शिक्षा मनुष्य को ऊँचा उठाने की प्रेरणा देती है। चरित्र को ऊँचा उठाएं आज सूचना तकनीकी ( Information Technology) का द्रुतगामी विकास हुआ है । रेडियो, टी०वी०, कम्प्यूटर, इण्टरनेट आदि द्वारा विश्व का सम्पूर्ण ज्ञान सहजता से उपलब्ध हो रहा है, लेकिन अगर बालक के चरित्र-निर्माण पर ध्यान नहीं दिया गया तो ये वैज्ञानिक साधन उसे पतित कर सकते हैं । आज विश्व के सर्वाधिक समृद्ध राष्ट्र अमेरिका का एक विद्यार्थी १८ वर्ष की उम्र तक कम से कम १२००० हत्याएं, बलात्कार आदि के दृश्य टी०वी० आदि पर देख लेता है। उस विद्यार्थी के कोमल मस्तिष्क पर इसका कैसा भयङ्कर प्रभाव पड़ता है ? आज यही तकनीक हमारे देश में भी सुलभ हो गयी है। अनेक प्रकार के चैनल व चलचित्र टी०वी० पर प्रदर्शित होते हैं जो २४ घण्टे चलते रहते हैं। उनमें से अनेक हिंसा व अश्लीलता को बढ़ावा देने वाले, हमारे पारिवारिक जीवन को विखण्डित करने वाले होते हैं। हमारी सरकार भी अधिक आमदनी के लालच में उन्हें बढ़ावा देती है। इसलिए समाज का यह दायित्व है कि जो व्यक्ति शिक्षणशालाएं चलाते हैं उनके द्वारा विद्यार्थियों को चरित्र-निर्माण के संस्कार दिये जायें। केवल नाम के जैन विद्यालय चलाने से काम नहीं होगा, उन विद्यालयों में जैन- संस्कारों का भी ज्ञान देना होगा. यथा माता-पिता की भक्ति, गुरु-भक्ति, धर्म-भक्ति व राष्ट्र भक्ति। इसी प्रकार से विद्यार्थियों को मानव मात्र से प्रेम, परोपकार की भावना, जीव रक्षा के संस्कार देने होंगे। उसे यह महसूस कराना कि कोई दुःखी व्यक्ति है तो उसको यथा शक्य मदद देना, सामान्यजन के सुख-दुःख में सम्मिलित होना, किसी के भी प्रति द्वेष नहीं रखना आदि संस्कार जीवन को उत्कर्ष की ओर ले जाते हैं। आज विश्व का बौद्धिक विकास तो बहुत हुआ पर आध्यात्मिक विकास नहीं हुआ। महाकवि दिनकर ने बड़ा सुन्दर कहा है - Jain Education International : बुद्धि तृष्णा की दासी हुई, मृत्यु का सेवक है विज्ञान । चेतता अब भी नहीं मनुष्य, विश्व का क्या होगा भगवान् ? १०५ मनुष्य की बुद्धि तृष्णा की दासी हो गयी है। तृष्णा निरन्तर बढ़ती जा रही है। विज्ञान का भी उपयोग अधिकांशतः विध्वंसक अस्त्रों के सृजन में हो रहा है। ऐसी स्थिति में मनुष्य और शान्ति कैसे प्राप्त होगी ? को सुख For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525046
Book TitleSramana 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy