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________________ १०४ : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक है। विद्यार्थी का दूसरा गुण है- अनुशासन- निज पर शासन फिर अनुशासन। दशवैकालिकसूत्र में कहा गया कि जो व्यक्ति गुरुजनों के आज्ञाकारी हैं, श्रुतधर्म के तत्त्वों को जानते हैं, वे महा कठिन संसार समुद्र को तैर कर कर्मों का क्षय कर उत्तम गति को प्राप्त करते हैं। विद्यार्थी का तीसरा गुण है- दया की भावना। दया, करुणा, अनुकम्पा, जीव मात्र के प्रति प्रेम, आत्मैक्यता की भावना- ये जैन-संस्कृति की मानवता को अनुपम देन हैं। सारे विश्व में कहीं भी जीव दया पर इतना जोर नहीं दिया गया। भगवान् महावीर अहिंसा और करुणा के अवतार थे। उन्होंने कहा ___ संसार के सभी प्राणियों को अपना जीवन प्रिय है। सुख अनुकूल है, दुःख प्रतिकूल है। सब लम्बे जीवन की कामना करते हैं। अत: किसी जीव को त्रास नहीं पहुँचाना चाहिए। किसी के प्रति वैर-विरोध का भाव नहीं रखना चाहिए। सब जीवों के प्रति मैत्री भाव रखना चाहिए।" शिक्षा प्राप्ति के अवरोधक तत्त्व उत्तराध्ययनसूत्र में बताया गया कि पाँच ऐसे कारण हैं जिनके कारण व्यक्ति सच्ची शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता। ये पाँच कारण हैं-अभिमान, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य। अभिमान विद्यार्थी का सबसे बड़ा शत्रु है। घमण्डी व्यक्ति ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। क्रोध की भावना भी विद्याध्ययन में बाधक है। प्रमादी व्यक्ति ज्ञानार्जन कर नहीं सकता। अत: भगवान् ने बार-बार अपने प्रधान शिष्य गौतम को सम्बोधित करते हुए कहा- “समयं गोयम मा पमायए।" हे गौतम! क्षणमात्र भी प्रमाद मत करो, अप्रमत्त रहो। प्रमाद पाँच प्रकार का हैमद, विषय (कामभोग), कषाय (क्रोध, मान, माया और लोभ), निद्रा और विकथा (अर्थहीन, रागद्वेषवर्द्धक वार्ता)। ये दुर्गुण आज हमारे समाज में बढ़ रहे हैं जो शिक्षा प्राप्ति में बाधक हैं। विद्यार्थी को सदैव जागरूक रहना चाहिए तथा अपना समय आलस्य, व्यसनों के सेवन, गप-शप आदि में नहीं बिताना चाहिए। शिक्षाशील कौन? उत्तराध्ययनसूत्र में एक स्थान पर प्रश्न आता है कि शिक्षाशील विद्यार्थी किसे कहें? जिस व्यक्ति में आठ प्रकार के निम्न लक्षण हैं वह शिक्षा के योग्य कहा गया है। वे लक्षण इस प्रकार हैं १. जो अधिक हँसी-मजाक नहीं करता है। २. जो अपने मन की वासनाओं पर नियन्त्रण रखता है। ३. जो किसी की गुप्त बात को प्रकट नहीं करता। ४. जो आचार-विहीन नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525046
Book TitleSramana 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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