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________________ १०६ : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक ___ भारतीय शिक्षा का आदर्श है- भौतिक ज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान का समन्वय। जैन शिक्षा के तीन अभिन्न अंग हैं-- श्रद्धा, भक्ति और कर्म। सम्यक् दर्शन से हम जीवन को श्रद्धामय बनाते हैं, सम्यक ज्ञान से हम पदार्थों के सही स्वरूप को समझते हैं और सम्यक् चारित्र से हम सुकर्म की ओर प्रेरित होते हैं। इन तीनों का जब हमारे जीवन में विकास होता है तभी हमारे जीवन में पूर्णता आती है। यही जैन शिक्षा का सन्देश है, हम अप्रमत्त बनें, संयमी बनें, जागरूक बनें, चारित्र-सम्पन्न बनें। तभी हमारे राष्ट्र का तथा विश्व का कल्याण सम्भव है। सन्दर्भ-सूची १. अनन्त सदाशिव अल्तेकर, प्राचीन भारतीय शिक्षण पद्धति. २. इसिभासियाई, १७/१-२. ३. स्वामी विवेकानन्द संचयन, भाग ३, पृ० ३०२. ४. वही, भाग ५, पृ० ३४२. ५. उपासकदशांगसूत्र, ७/२२/७. दशवैकालिकसूत्र, ९/४/३. ७. वही, ९/२/२२. ८. वही, ९/२/२४. ९. आचाराङ्गसूत्र, १/२/३/४; उत्तराध्ययनसूत्र, २/२० एवं ६/२. १०. उत्तराध्ययनसूत्र, ११/३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525046
Book TitleSramana 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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