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है तथा मांसाहार से जो भयंकर बीमारियाँ फैलती है, उनका सामूहिक प्रचार करने की आवश्यकता है। यह जैन समाज के लिये सबसे बड़ी चुनौती है।
वर्तमान जैन समाज नये सन्दर्भ में समय की आवश्यकता को पहचानकर एकता व संगठन को सुदृढ़ करके अहिंसा, करुणा, प्रेम व व्यसन मुक्त जीवन की ओर आगे बढ़कर सम्पूर्ण विश्व में अनेकान्त, सह-अस्तित्व, पुरुषार्थ, कर्मवाद, समता तथा व्यक्ति स्वातन्त्र्य की भावना का प्रचार करने में सबल सिद्ध होगा, यही हम आशा करते हैं।
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