________________
१२६
चालुक्य वंश का अन्त कर दिया। कुछ समय तक चालुक्य वंश के राजा राष्ट्रकूटों के अधीन सामन्तों के रूप में रहे। विक्रमादित्य 'चतुर्थ' के पुत्र तैलप 'द्वितीय' ने दसवीं शती के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रकूटों का अन्त कर चालुक्य शक्ति का पुनरुद्धार किया और कल्याणी के उत्तरवर्ती चालुक्यवंश की स्थापना की। इस वंश ने भी जैनधर्म के प्रति उदारता और अनुकूलता दिखायी। सोदत्ती के अंकेश्वर मन्दिर से प्राप्त एक शिलालेख में यह उल्लेख है तैलप 'द्वितीय' के महासामन्त शान्तिवर्मा ने इस नगरी में एक जिनालय का निर्माण कराकर उसके प्रबन्ध के लिये भूमिदान दिया था। उसकी माता ने भी उस जिनालय के विकासार्थ भट्टारक भुजबल (यापनीय संघ की कण्डूरगणी शाखा से सम्बद्ध) को दान दिया था।
श्रवणबेलगोल से प्राप्त एक अभिलेख नं० ३८ (५९) में गंगनरेश मारसिंह द्वारा (शक सं० ८९६, सन् ९७४) किसी चालुक्यनरेश राजादित्य को पराजित किये जाने का उल्लेख मिलता है। यह राजा वेंगि के पूर्वी चालुक्य वंश से सम्बद्ध रहा होना चाहिए। इस वंश में लगभग कई राजा हुए जिन्होंने लम्बे समय तक राज्य किया। इनके काल में जैनधर्म काफी फूला - फला। इन नरेशों में से यद्यपि कई नरेश शिवभक्त थे, पर उन्होंने जैनों को भी सहिष्णुतापूर्वक दान दिया। विष्णुवर्धन 'चतुर्थ' (७६४-७९९ ०), अम्म 'द्वितीय' (९४५ - ९७० ई० ) और विमलादित्य (१०३२ ई०) विशेष फल्लेखनीय हैं जिन्होंने क्रमशः श्रीनन्दी, अर्हनन्दी तथा त्रिकालयोगी सिद्धान्तदेव को आश्रय दिया। इसी समय के दुर्गमंच गुफा में प्राप्त लेख के अनुसार रामतीर्थ (रामकोंड) नामक पहाड़ियों पर विजगापट्टम के पास एक प्रसिद्ध जैन संस्कृति केन्द्र था जिसके आचार्य श्रीनन्दि थे। अम्म के सेनापति कटकाधिराज दुर्गराज ने धरमपुरी ग्राम के दक्षिण में एक जैन मन्दिर का निर्माण कराया और अम्म ने मलयपुण्डी नामक गांव तदर्थ दान में दिया। भीम और नरवाहन 'द्वितीय' ने भी जैन मन्दिरों का निर्माण कराया।
श्रवणबेलगोल के चन्द्रगिरि पर्वत पर स्थित इरुवेब्रह्मदेव मन्दिर के सामने की चट्टान पर लेख नं० २३७ (१५२) उत्कीर्ण है जिसमें किसी चगभक्षण चक्रवर्ती उपाधिधारी गोग्गि नामक एक सामन्त का उल्लेख है । यह कोई चालुक्य सामन्त होना चाहिए जिसका उल्लेख मैसूर अभिलेख में प्राप्त होता है ।
श्रवणबेलगोल के ही एक अन्य शिलालेख नं० ४५ (१२५) तथा ५९ (७३) में यह उल्लेख मिलता है कि होयसल नरेश विष्णुवर्धन के सेनापति (गंगराज ने चालुक्य सम्राट् त्रिभुवनमल्ल पेर्माडिदेव को पराजित किया। यहीं जिननाथपुरवर्ती अरेगल वस्ति के पूर्व में उत्कीर्ण एक शिलालेख नं० १४४ (लगभग शक सं० १०५७) में त्रिभुवनमल्ल को 'चालुक्याभरण' कहा गया है और उसका आधिपत्य होयसल राज्य के ऊपर बताया गया है (जैनशिलालेखसंग्रह, भाग १, पृ० २९४)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org