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१२५ इसी काल में हुए । विजयादित्य ने ६०८ शक सं० में मूलसंघ परम्परा की देवगण शाखा के किसी जैन आचार्य को दान दिया। इसका उल्लेख लक्ष्मेश्वर से प्राप्त अभिलेख में मिलता है। फ्लीट ने इस अभिलेख को भी जाली माना है, पर इसे अन्य विद्वान् स्वीकार नहीं करते। विजयादित्य के ही शासनकाल में शिवगांव (धारवाड़) से उपलब्ध ताम्रपत्र में यह उल्लेख मिलता है कि शक सं० ६३० में अलूप (अलूक) सामन्त चित्रवाहन के अनुरोध पर विजयादित्य ने जैन विहार को दान दिया था। इस विहार का निर्माण विजयादित्य की बहिन कुंकुम देवी द्वारा पुलिगेरे नगर में किया गया था। एक अन्य जैन शिलालेख ( शक संवत् ६४५) खण्डित अवस्था में मिला है। शक संवत् ६१५ का एक दूसरा अभिलेख है जिसमें विजयादित्य द्वारा पुलिकर नगर के दक्षिण में स्थित कर्दम नामक ग्राम उदयदेव पण्डित जो विजयादित्य का पुरोहित था दान देने का उल्लेख करता है। अतएव यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि विजयादित्य तथा विनयादित्य, दोनों जिनभक्त नरेश थे।
विजयादित्य के बाद विक्रमादित्य 'द्वितीय' (७३३-७४४ ई० ) राजा हुआ जिसने पल्लवनरेश नन्दिवर्मन् को पराजित किया, परन्तु काञ्ची को नष्ट नहीं किया। उसने कलभ्र, चोल, पाण्ड्य और केरल शक्तियों को भी त्रस्त किया तथा अरबों के आक्रमणों को विफल किया।
इस राजा से सम्बन्धित एक अभिलेख लक्ष्मेश्वर से मिला है जिससे पता चलता है कि उसने पुलिकर नगर में शंखतीर्थ वसति नामक मन्दिर को सुशोभित कर धवल जिनालय का जीर्णोद्धार किया और तदर्थ नगर की उत्तरवर्ती भूमि का दान दिया। यह दान विजयदेव पण्डित को दिया गया जो मूलसंघ- परम्परा की देवगण शाखा से सम्बद्ध जयदेव पण्डित के शिष्य रामदेवाचार्य के शिष्य थे। एक व्यापारी के अनुरोध पर यह दान जिनपूजा के विकासार्थ दिया गया था।
इसके बाद कीर्तिवर्मन द्वितीय' (७४४-७५७ ई०) राजा हुआ। यह इस वंश का कदाचित् अन्तिम राजा था। यह राजा भी जैनधर्म का परम भक्त था । आडूर से प्राप्त तिथि विहीन प्रथम अभिलेख में धर्मगामुण्ड द्वारा निर्मित जिनालय एवं भिक्षुगृह को दिये गये २५ निवर्तन भूमिदान का उल्लेख है और द्वितीय अभिलेख में कीर्तिवर्मन के सामन्त माधवपति अरस द्वारा जिनेन्द्र मन्दिर के पूजार्थ तथा अन्य धार्मिक क्रियाओं के लिये पडलूर के चेडिग (चैत्य) को भूमि दान देने का विवरण है। दोनों अभिलेखों में आचार्य प्रभाचन्द्र का नाम आया है। अण्णगेरि ( धारवाड़ ) से प्राप्त जेकरि के प्रमुख कलियम्म द्वारा निर्मित चेडिय (चैत्य) का उल्लेख है। डॉ० लक्ष्मीनारायण राव के अनुसार कलियम्म कीर्तिवर्मन द्वितीय' के आधीन कोई जैन अधिकारी था।
राष्ट्रकूट राजा दन्तिदुर्ग ने कीर्तिवर्मन 'द्वितीय' को पराजित कर वातापी के पश्चिमी
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