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जुमइ जोसी बभण घाया, तउ प्रीय पहुतु कालि । कइ पीपल मइ छेदिआ, कइ सर फोड़ी पालि ।
कइ मइ हर माल उतारी कंत भयंगम डसीउ । नाह मुझ दुख विलगउमारी
कूं कूं कजल सिर सिंदूर उरि ऊतरिउ हार किइ मइ जोसी बंभण मार्या तूं प्रीउ
डसी कालि | | त्रिभुवने नासंति विषं । ।
मोरी मोरी बेटकी माझिम राति नइ कांम भुंअंगमि डसीउलि ए ।
पांच सात मिली सखी समाणी नइ डंक विधाता देवी मन हसी ए । गोविंद गरुड़ गामी उपचार भलउं किहविष ब्रह्मा मिउ ए ।
मोरी मोरी द्वारका पाटणि श्री कृष्ण राजा सोल सहस अंतेरि राणी साठि लाख कूअरा छइ परिदमो राजा भरि भरि तूं आरे डंक न भरइए गोरी गोरी हाथ पोअण पान नइ ऊपरि जंबू अबल सखी मोकलीय ओ स्वामि पास तास त्रीय तणा वचन मोकलीओ छइ
स्वामी पासे तीस त्रीयतणा वचन संभारउ
पड़ पड़ तुं आरे डंक ना पड़ड़ मोरी मोरी सरग भवन हूंतउ बलवंति आणी ओ अंगणइ सेपिओ पारिजातो।
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तास वृक्ष तलि संकेत भइला मारि मारि र डंक नर मरइ ए मोरी मोरी त्रिभुवने नासंति विषं।
कठि ऊठ रे डंक मम लायसि खेव देवकी नंदन गुरड़ गामी एह आया सुर असुर मिल्या समुद्र विलोयु । चउद रतन अमूलिक नीकलिओ ए । काम देह शंकरि विरह विष मारीला त्रीस क्रोड़ि देवता अमृत पाया ऊठ ऊठ पन्नग पेरवतां जिणिओं अमृत आणीओ तु अंग भोजन करइ पंखीय राओ तास वाहणि पुराण पुरुषोत्तम त्रिभुवन नायक आपण पइ देवि धाया ।
ऊठ ऊठि जास चलणे लागी त्रिभुवन पावनी सुरसुरी गंगा सदा वहइ तास दरसणि मनि ध्यान धरती समरण करंता त्रिभुवन पातक नासइ ऊठ ऊठि गोविंद वंदावनी दशन किरणा ओली कृपां कोमला स्वामी व्रत झाली तास वचचभणतां अमीय कलस भरीआ श्रृंग त्रिलोचन डंक ऊपर कलश ढालीआ ऊठि ऊठि । त्रिभुवने नासंति विषं । । दोष पख बाजी गुरड पुहता त्रिभुवन भय निनाद जास तणी हाकइ त्रिभुवन कंपइ रे भरम भागउ भरतार दोष पंथ ||
अरध ऊपनुं काशिप ऋषिनुं स्वामी बाल पणइ क्षुधाऊपनी भोजन द्यउ पश्चिम दिसइ पपीया सरोवर वर गज कुंभ । ति पाठाइ दुख पंख ।। ऋषि ना वचन श्रवणे सुणी पुहता सरोवर पालि त्रिणि पुरुष तेणइ जाण्या ते डरीओ मन मांहि गुरड भणइ अम्हे किम न बहुं कइ पयसु पायालि दुख पंख वाजीआ एकणि करि कुंभ लीओरे बइठो वृक्षह डालि शाखा भाजइ नइ ऋषि पुकारइ उडि गयुं आगासि दुख पखा रस खंची नइ रवि तिहां
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