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१०९ बालीअ अमि भरतार नइ जिम जगि हुइ अजुवालडं एं पातक लागइ बहु तणुं काहं डंक जगावए। अहि वंशमांहे ताल्ह बलवंत अमीय कलस लेइ आवए। सत प्रमाणि सुणे ओ वासिग बाली कंत कुठावीओ।।६२।। त्रिभुवने नासंति विषं। पुहवलि पेहुलि जइ धर धोरी नइ धवल चंद घर कांइ सूइ ए सजल लोक बहु अति घणा मिलिआ नइ बहु सउखुं कांइ झूरइ ए बहूअ सइखं कांइ फुरइ हुतु फण पति राओ धवल चंद्रधर कांइ सूइ ऊठीओ कामणि मनिहि उछाह घरि घरि कूडी नइ मंगल च्यारि नइ ठामि ठामि वधावणुं
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तालीआ तोरण वनमालि नइ मोती रा चोक पूरावियाउ ए॥६३।। त्रिभुवने नासति विष।।छः।। खेइलइ पाटण वसइ सोनार नइ संकली घडाविणि प्रीयु गयउए। सांकली घड़ावतां लागी वडी वार नइ हार घडावतां निसि भइ ए सांकली घडावी प्रीयड़उ मारगि चालिउ नइ कालीअ नागिणि प्रीअड़उ डसीउए थिरथिर प्रीअड़ा तुं कायर म होइ जे जब लगइ चाहुंथीअ गारुड़ी ए। जाइ जोऊं तिहांवलि सतरि सहस गुजराति नइ अढार लाख नइ बाणुं मालq ए चाह जोवंती सोई दोइ जण मिलीआ नइ एक शिंकर बीजु सहस फणु शंकर बइठउ तिहां जंपइ छइ जापन सहस फणुं नाम अमृत झरइए।।६४॥ त्रिभुवने नासंति विषं।। वालीआ वेद जिण जाली होलका आदि संकेत नुसुणि हो डाढा वालीआ जइ रे जंगम वालू आ चेत अचेत आदि संकेत नु सुणि न सचेत वाली वेद वालीओ धीरज काल कूट विष झंपइ वाजीअ लहरि विष त्रिभुवन कंपइ वालीआ वे स्त्री रूपइ ताल्हण आविउ वाजीआ लहरि विष त्रिहु अण छायुं वालीआ कुपिउ ताल्हण जिणि संखूओ भागु उडिओ गुरुड विष गगनि विजणू बालीआ वेद जिणि जालीओ लंका।। त्रिभुवने नासंति विषं. ।। बाली वेस प्रीयडउरे ताल्हण देइ अहि रात। ऊभी कामणि विल विलइ रे जिम रायांगणे भाट जिमरायांगणि भाट तिम वानर विछोही।। कवण जराखइ राओ राणा घूमिओ नाह पड़िउमही मंडण रुंध्या च्यारे गात्र। त्रिभुवने नासंति विषं.
चंदन चोली जउरि भीजइ आंसू नीर प्रवाह। विष आठे अंगे संचरिओ प्रीअड़ो लहरइ जाइ। निठुर नयणे न जोइयइ हंस गमणि मृग नयणि मुंध मधुर सरि रोवइ हीअड़उ मोरु आस। न मंडइ प्रिय जिम हरि जाइ चंदन चोली त्रिभुवने नासंति विषं।
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