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करल केस धूणइ सा बाली नइ पान फूल सवि प्रीसिउं गया ए हाहा देव अणाह ससि वयणीअ सांभलि प्री पुष्य वयण तिणि ठाइ फाटइ नही आवघ्रंभि सत्त खंड किमि न थाइ नान्हडीआ हुं कोइ न मूई बाला पण कुझ मूआं। दुख न देखत प्रीअ तणुं विसहर घंघ ली आह।।५६।। त्रिभुवने नासंति विषं।।छः।। रोवइ रोवइ बालीअ विरह करालीअ प्रीअ बिण धडीय म जीवणुं ए सोहग सुंदर माहरउ बहु गुणवंत नइ कहु सखी मइ अपराध कीओ ए चालि इ।। कहु सखी मइ अपराध कीधउ कहुं जे भरि निरभर ठाइ। बालइ योवन तरुण पणि मइं बांभण हणीआ गाइ कइ मइ पीपल छेदिआ, कइ सरो फोडी पालि रंगइ रमतां निसिह भरि, मुझ प्रीउडो डसीउ कालि।।५७|| त्रिभुवने नासंति विषं।। सखीय भणै सखी सरोवर जाओ नइ अंग पखालु नइ अंजल दीयउ ए हुं न जाउ सरोवर अंग न पखालुं न कंठन मेल्हुं मा हरा प्रीय तणुं ए चालि।। कंठ न मेल्हुं प्रीअ तणुं देव मेल्हापै मांड। लोक मांहिसयो मणी जण जण तमासइ राड। अवसर मेहलु एकलुं सरसी सिवपुर जाऊं। कइ प्रीअडा सिउं महि मंडलइ मिलिउं कइ साथइ सिपुरजासिउँ।।५८॥ त्रिभुवने नासंति विष।।छः।। वाली बाली विसहर लागु हो देव नइ कालु भुयंगम प्रिउ डसीउ ए। सिर होसु प्रीय समु तिल तिल देहज बालउं वाढी कए तल करुं जूनुआ मुहत विसहर टीलां अस्त्री हत्या ब्रह्म हत्या बाल हत्या विस डोलि पासी जालि सुहंता तास न साधु बाली वेस हो बालि हा।।५९।। त्रिभुवने नासंति विषं। छः।। बाली रे बाली रे पगे लेइ बयठां नइ साथ न मेल्हिसु प्रीय तणुं ए करु सजायी मलावि सिउ वार नइ मुंड गुंथावं सही तोडरुए मही तस मोडर मूंड गुंथाउंए चरणामृत अणावं सूकडि सोनुं अनइ सावटू गरथ भंडार उघाड़ो तेडाईं ब्राह्मण दान देवारुं। धान देइ जलि पइसुं हुं तुम्ह प्रीऊड़ा साथ न मेल्हओ बाली पद लेइ मरसइ।।६०॥
त्रिभुवने ना।।
पहिरि पहिरि चरणा नइ ओढणि घाटं नइ अरघ देऊ देव सूरजि जुहार नइ सुर तेत्रीसह तिहां मिलइए। भेर भुंगल संख मादल नाद नीसाणे सवि मिल्या ए। हरि हरि भणती जमहि विचाली रूप त्रिभुवन माह ए। हंसग मणि हीइ मलपंती पहिरणि चरणा सोह ए।।६।। त्रिभुवने नासंति विषं गच्छ गच्छ।। तेड़उ नवकुल नाग चालु पयालि भद्र पालक लागइबिहु जण तणा ए। कांइ राखु राखु
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