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१०७ ढालि गाडू राय ईसर राय पूजइ हरिहरं। ब्रह्मज्ञानी ध्यान न चूकुं पखवि देहरासर वरं ४९ त्रिभुवने नासंति विसंगछ। भारइ भारइ वस हरण केरी नारि नइ अवढ सरोवर पालड़ी ए दाझइ दाझइ जलचर जल हमझारि नइ।। जलणि जलइ सरि पदमिनि ए। नालि कमल सिउं पदमिणि दाझइ नइ विषमा देवि जंपइ सुर नर इन्द्र मरइ इन्द्रासण चउदस भुवन विष कंपइ ऊलटिऊं मरल ब्रह्माण्ड चिलउंगइ गगनंतरि डालड़ी वस हरण की नारी भारइ अवढि सरोवर पालड़ी।।५०॥ त्रिभुवने नासंति विषं।। सदाभार विष कुंडल कानि नइ विषमल कंचुओ चूडिलु ए नीला लाहल कंकण हार नइ नह सति वीटी विष झरइ ए।। चालि झरइ नहसति निसुणि वाला ताल्हणि कुंअर कामिनी। निसुणि जंगम पड्सि अंगम भणइ पायालह सामिनी। जस पाय नेउर रणझणोकार कारणि मारग रुअडूओ सवा भारविष कुंडल काने विष मल कंचू चूडिलुं॥५१॥ त्रिभुवने वासंति विषं त्रुटि त्रुटि स्वाहा:।। नयणे काजल मुखिहितं बोल नइ कुरल केश मोती जड्या ए। पाटि सिन्दूर नइ ओढणि घाट नइ विष भरि चाली पदमिणि ए। चालि।। विष नरा नइ देवि चाली कामिनी कमल सुकरि लीया कुरंग नयणी मधुर वयणी सकल वाण सुगंधीआ कपोल मंडल भमइ दीसइ, तेजि त्रिभुवन डारिआ श्रृंगार करि नइं देवि चाली नयन काजल सारी।।५२।। सात सखी मिलि करइ शृंगार नइ वंश हरणपुरि संचरइ ए।।५३।। त्रिभुवने नासति विसं।। सोवन मुंद्रडी झबकइ छइ ते सिवि हेम तासु अडित वाहा ही ए। एकल कुमर उछंगिइ पुढीओ काने कुंडल रतन मइ ए चालि २॥ रतन मइ कुंडल कानि झबकइ तेणि त्रिभुवन तारिआ। सुर असुर मिलीआ तेत्रीसइ चउइ भुवन विषु वारीया राजा तणी वाचा लेइ पिहलि नाग नवकुल विष वारीआ एहस केत सुणि हो जंगम मांद राउत्त भरिणा डीआ।।५४॥ त्रिभुवने नासंति विषं।।छ।। बाली बाली प्रीअड़ा बाकर खेल नइ खिणि एक जागइ खिणि प्रीअ सूइ ए दीवडौ प्रीअड़उ विसहर डसीओ नइ नव योवन नव नेह भाव चालि।। विसहर डसीउ कंत सेज छांडी धरणी दलीओ। रूठउ काल कृतान्त। अंगो अंगइ मेलवइ मुख तंवोल नलेति हा हा देव दया मणी वाकर किम खरंति।।५५।। त्रिभुवने नासंति विषं गच्छ २।। हार नेउर कर कंकण भांजइ नइ ओर नखि फाड़इ छइ कंचूओ ए
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