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ऋष तप साझइ तेणइ सरोवरि वांदइ संझं त्रिकालीइ अमर चाऊ सुणि हो शंकर भाषित चाउ सरोवर कहीइ। छन्नु कोड़ि फजिंद नाहइ कोड़ि बहुत्तरि नागणि नाहइ ४३ त्रिभुवने नासंति विषं।। रर द्रह गंगइ सुर नर इंद्र नइ गुरम गोविंद नै दीठ सरे ते सर पालिहि हणमंत हाक तइ काल चेतन चेतइओ शशि झरहरइ ए। सेस उसेसहिंइतहं करनइ काल कोप नीवारियइ ए। श्रवण संकितइ सुणि हो शंकर ऊठवि ऊदकदिवारी ए हरिहर ब्रह्मा नर इंद्र सेव करइ नेह ते सर ऊठी ऊठी डंक उदक दिवाक आज पिता हन्नु तुम्ह परं ४४ त्रिभुवने नासंति विषं।।छ।। चाहि रे चाहि निद्रापण भाजी नइ आछा तुं दिवा काल कहाणी नइ तूं दिवा हुंकार नइ ब्रह्म जगावइ नइ ब्रह्म पुत्र वदी ज्ञानी षिमी बाधाकाल कहाणी कानि सुणइ सोल कला शशिकर झरइ बिन्दु वरसइ बहुगुण आछा दिन उधाड़ि डंक न गहि सूस नितु निरभरं विदच्यारि वरवाणे हो ऋजु ययु साम अथव्रणं ४५ त्रिभुवने नासंति विष।।छ।। कनकादंती नगरीयं तणु नइ प्रवेस नइ काल कल्प लिंग वाचीयइ ए। तेह लिंग देउल दारिव दुआरि नइ हर हर केसरि पूजियइ ए तेह लिंग देउल दाखि दुआरि नइ आदि नील महसरं एकल मूरति चाहिं जंगम सोइज ब्रह्म हर हरं करधरी ऊठाड़ि कल काह तुं निरभरं। उत्तम जल वखाणि हो जंगम पेखनि मान सरोवरं ४६।। त्रिभुवने नासंति विष||छ।। अमृत नइ सुणि विष लिंग ॐकार नइ रसन मइ खचित सिव जल हीरि ए। करइ देरासिर वासिग राउ नइ आणि न गंगा जलं। पुत्र आणि वेगि खेवि मला विसिवार नइ आण नीरस निरभरं। सहस फणि मणि लिंग पूजा कुंभ भरि गंग जलं। ढालि गाडू राइ ईसर राजा पूजइ हरिहरं। ब्रह्म ज्ञानी ध्यानलि चूकू पेखवि नामल देवरं।। ४७ त्रिभुवने नासंति विषं।।छ।। खीर खंड मधु दधि घृत लेई, अनइ आणि पंचामृत ब्रह्म पुत्र खीरि न्हवण हटकेसर देव
नई
करइ पायाल तणु राउ चालि।। पायाल पन्नग राज पहुता, जंगम वीर निवारिया। वीर वंसे वीरघंट वाजइ नागनवकुल चालिया। आवर्ति पडीओ डंक जीवइ खयं आओ घण वरसइ सोल कला ससिहर झरइ। तुं तु सिवपुर सूनु किम करइ ४ त्रिभुवने नासंति विष गच्छ गच्छ मृगमद चंदन अगर अणावउ नइ कपूरि करावं आरती ए। करइ देहरासर वासिग राओ नइ दीठउ पायाल त्या हां सहस फणुं। सहस फणामणि लिंग पूजुं दीठउ दुल्ल हो। त्रिहु देवि मूरति देव देवे दाधिअउ
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