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१०५ त्रिसि आकुलीओ दुहं दिसि जोवइ नइ मझ नइ काल वेला भइ ए आवतां देखइ त्रिणि जणा अनइ स्त्रीअ पुरुष एक साथि सुणहड़ी ए चालि चालि स्त्रीअ पुरुष एक साथि सुण ही षीरो कति झरइ ए पची रसोई सुणिहो ज्ञानी पेहुलि इणि परि बोलइ ए पूरव दिसिइ दृष्टि नवि सूझइ बइठो वड़ शाखा चडी। भणइ ति पेहल सुणिहो ज्ञानी मारिकण्डरिषि सांसइ पडी त्रिभुवन नासंति विसं।। कवण साडूंबडी कवण सा डूंब नइ कवण सा सुणहड़ी विषहर ए हूं तुम्ह पूछू छु जंगम देव नइ भांजि संदेह तूं ब्रह्म पुत्रो चालि।। तुम्ह गानी विषइ वाचा कालि काहाणी। कांइ न सणुं चहुं युग तणो आदि ते जाणी।। पेहुलि इणि परि बोलइ थावर जंगम कवण गुणहु तुम्ह पूंछू सुणहड़ी। अछइ ज्ञान तुं कहु विचारी कवण सा डूंब नइ डूंबडी ४० त्रिभुवने नासंति विषं गच्छ गच्छस्वाहा सप तप सागर भीतर दीप एक अछइ नइ दीपनी तरि अछइ कुसुम नयरो। कुसुंभ भी वरउ कुसंभ भीतरि कुण्ड एक छइ नइ कुंड भीतरि सिलाका काचनी ए काली काली चउदिसि राति अध राति नइ काल जनम तोरउ भयु ए कालु कालु कूकर कुर कुसुम नइ वान नइ पाय खणइ मुख छिति करइ ए ऊछउ ऊछउ जंगम बालाली लडं उंनाल नइ बाल लिउ वृक्षि तलि नांखियउ ए त्रिभुवने नासंति विषं रातु रातु सरोवर रातिली पालि नइ रातलुं जल तिहां नीपजइ ए रातुं रातुं पाटण रातलुं राजा नइ रातुं सिंहासण छइ बइसणइ ए। राता राता लोचन रगति गलि हार नइ राती गदा सो करि धरइए। वारु वारु आरंगदे कंत तुम्हारउ नइ आडी जवाहरड़ी कांइ चड़इ ए।। हुं चडिसुं वाहड़ी सुकरि सुसंवाद नइ अभिनव परीक्षा भोला वियउ ए। गवरी पूछइ छइ सुणि जगनाथ नइ प्रिथवीय सिसिउ हलाइ यउ ए। ताल्हइए आं धन्वन्तरि हूओ संवाद नइ धूणाहड़ विष धड़हड़इ ए। दाकइ डूंगर उटकइ वास नइ मेरु शिखिरे विष परजलइ ए ४१ त्रिभुवने नासंति विष गच्छ गच्छ अहो विष अमृत भणी कांइ न जाउ नइ मान सरोवर तणुं जल ऊठंउ डंक मान सरोवर जाउ नइ आणु नइ कमल सोवन मइ ए। सुवर्ण मइ कमलं सुगंध बहु गंधा सुर तेत्रीसइ वांदीया सर्ग गंगा हेमा जल पाणी तिणि ओदकि ओतपनीमा रे रे काल चेति डंक सूइति निरभरं।। उत्तम जल वखाणीइ जंगम पेखिवि मान सरोवरं ४२ त्रिभुवने नासंति विष।। मानस सरोवर गंगो चु प्रवाह नइ एक डंक वहइ पूरब दिसइ ए सूर तेत्रीसइ करइ समान नइ ऊठ ऊठ डंक नयणे न पेरिवसि ऊठउ अंग पखालीइ
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