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का ठीक ढंग से प्रयोग किया जावे तो स्वामी की रक्षा करती है, शत्रु को मार डालती है और अनजान आदमी उठाकर घुमाने लगे तो उसी का संहार कर डालती है। पूर्ण जानकारी के अभाव में सफलता कम, विघ्न बहुतों को उपस्थित होते हैं ।
मन्त्र देवाधिष्ठित होते हैं और साधक मन्त्र की साधना द्वारा उनके अधिष्ठाता देवों को वश में करने की चेष्टा करता है। अतः इस क्रिया में वही सफल हो सकता है जो अपने को देवता से भी अधिक शक्तिशाली मानता हो और यह आत्मविश्वास हो कि देवता नहीं, देवता का पिता भी आये तो वह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । किन्तु जो देवता के नाम से घबराते हैं, स्वयं को उनका गुलाम समझते हैं और समझते हैं कि देवता बड़े शक्तिशाली होते हैं, वे यदि उन्हें वश में करने के लिए चलें तो देवता उन्हें न डरायें तो भी वे स्वयं ही अपनी कमजोरी के कारण डरे बिना नहीं रह सकते । ( नमस्कार महामन्त्र - पं० कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री, पृष्ठ १२)।
मुमुक्षुओं के लिए मन्त्र-तन्त्र आदि की सिद्धि का निषेध किया गया है; क्योंकि यह मुनियों को दूषित करता है। वशीकरण, आकर्षण, विद्वेषण, उच्चाटन, जल, अग्नि, विष आदि का स्तम्भन करना, सेना का स्तम्भन करना, विद्या को छेदने का विधान साधना, वेधना, वैद्यकविद्यासाधन, यक्षिणी मन्त्र, पाताल सिद्धि के विधान का अभ्यास करना, मृत्यु को जीतने की मन्त्र - साधन करना, अदृश्य होने तथा गड़े हुए धन को देखने के लिये अंजन की साधना, भूत साधना, सर्प साधना इत्यादि को जो मुनि होकर आजीविका का साधन बनाते हैं, धनोपार्जन करते हैं वे अत्यन्त निन्द्य व नरकगामी कहे गये हैं । परन्तु जिन मुनियों को चोरों से उपद्रव हुआ हो, दुष्ट पशुओं से पीड़ा हुई हो, दुष्ट राजा से कष्ट पहुँचा हो, नदी द्वारा रोके गये हों, भारी रोग से पीड़ित हो गये हों, तो उनका उपद्रव विद्यादिकों से नष्ट करना चाहिए, इसमें दोष नहीं है। मन्त्र - यन्त्र-तन्त्र - आचार्य आदिसागर अभिनन्दनग्रन्थ, पृष्ठ १२६)
मन्त्र साधना विधि
यह सही है कि ऐसी कोई ऋद्धि-सिद्धि नहीं है जो मन्त्र साधना से प्राप्त न की जा सके; किन्तु मन्त्र - सिद्धि के लिए मन्त्र - साधन की ठीक-ठीक विधि की जानकारी होना आवश्यक है । मन्त्र की शुद्धता, मन्त्र का प्रकार, किस राशि वाले को कौन से तत्त्वीय बीजाक्षर वाले मन्त्रों की अनुकूलता, मन्त्र के अनुसार पश्चिम- नैऋत्य आदि दिशा, प्रभात - मध्याह्न आदि समय, शंख-वज्र आदि मुद्रा, पद्म-भद्र आदि आसन, श्वेत-लाल आदि वस्त्र, श्वेत-पीत आदि पुष्प, पूरक- कुम्भक आदि योग, स्फटिक-मूँगा आदि की माला, दक्षिण- वाम हस्त, मध्यमा अनामिका आदि अंगुली, जल- पृथ्वी आदि मण्डल और सीधा - वाम स्वर का ज्ञान परमावश्यक है। इसके अतिरिक्त योग, उपदेश, देवता, सकलीकरण पंचोपचार और जप - होम की विधि का वेत्ता होना भी अनिवार्य है ।
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