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________________ यन्त्र, मन्त्र एवं साधना विधि डॉ० महेन्द्र कुमार जैन 'मनुज * मन्त्र की शक्ति अतुल है। दुनिया की ऐसी कोई ऋद्धि-सिद्धि नहीं है जो मन्त्र द्वारा प्राप्त न की जा सके। महामन्त्र णमोकार में से ही समस्त मन्त्रों के बीजाक्षर निष्पन्न हुए हैं। मन्त्र, अक्षर अथवा अक्षरों का समूहरूप होता है। कहा है- 'निर्बीजमक्षरं नास्ति', अर्थात् ऐसा कोई अक्षर नहीं है जिसमें शक्ति न हो। शब्द की शक्ति अपरिमित है और उसका अनुभव हमें अपने जीवन में होता रहता है । पद, पदार्थ और पदों के योजक की आध्यात्मिक शक्ति का समन्वय ही मन्त्र है। ये तीनों जैसे होते हैं, की शक्ति भी वैसी ही होती है। मन्त्र साधना की सफलता मन्त्र, उसका प्रयोग और प्रयोक्ता की साधना पर निर्भर करती है । यदि मन्त्र ठीक नहीं है, वह किसी सच्चे साधक द्वारा प्रयुक्त न होकर किसी ठग द्वारा प्रयुक्त किया गया है, अथवा मन्त्र अशुद्ध है, उसकी अक्षर-योजना ठीक नहीं है, अथवा अक्षर-योजना ठीक होते हुए भी उसका उच्चारण ठीक नहीं- अशुद्ध पाठ किया गया है, या पाठ शुद्ध होते हुए भी जप करने वाले का चित्त एकाग्र नहीं है, उसमें उसकी श्रद्धा नहीं है तो मन्त्रशक्ति कार्यकारी नहीं हो सकती । मन्त्र साधना जैसे बिना शक्ति का कोई अक्षर नहीं, उसी तरह — 'नास्ति मूलमनौषधम्' ऐसी कोई वनस्पति नहीं जो औषधि रूप न हो । आवश्यकता ऐसे जानकार योजक की है जो विभिन्न वनस्पतियों के मेल से विभिन्न रोगों की औषधि का निर्माण कर सके और ऐसे प्रयोक्ताओं की आवश्यकता है जो रोगी के अनुरूप उसको प्रयोग करने की सलाह वगैरह दे सके, साथ ही रोगी सच्ची आस्थापूर्वक औषधि का सेवन कर सके, तब उसका फल सामने आयेगा ठीक इसी तरह मन्त्र के विषय में है । कुशल मन्त्र - योजक, मन्त्र - प्रयोक्ता और श्रद्धायुक्त मन्त्र - साधक । बल्कि औषधि से अधिक सावधानी मन्त्र के विषय में बरतने की आवश्यकता है। *. मन्त्रशक्ति दुधारी तलवार है, वह रक्षक भी है और संहारक भी । यदि तलवार बी० ३/३७, भदैनी, वाराणसी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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