SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४ वही बैल मर कर शूलपाणि यक्ष बना अब गाँव वालों से अपने प्रति किये गये दुर्व्यवहार का बदला ले रहा है। उसने घर-घर में पीड़ा, त्रास तथा भय का आतंक फैला दिया है तथा सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया है।" ___महावीर उनकी कथा सुनकर भी निर्भय बने रहे तथा गाँव वालों से अनुमति लेकर वहीं एकान्त स्थान देखकर ध्यानमग्न हो गए। अर्द्ध रात्रि को यक्ष उस स्थान पर आया तथा एक मनुष्य को निर्भय खड़ा देखकर आग बबूला हो गया। उसने भयंकर अट्टहास किया लेकिन महावीर जरा भी विचलित नहीं हुए। वह यक्ष प्रलयकाल के तूफान की तरह हुंकार करके रौद्र नृत्य करने लगा। लेकिन महावीर फिर भी स्थिर रहे। उसे उन पर अत्यधिक रोष आया। वह उनको तरह-तरह से यातना देने लगा। कभी मदोन्मत्त हाथी की तरह पैरों से रौंदता, कभी गेंद की तरह आकाश में उछालता, कभी बिच्छू की तरह जहरीले डंक मारता तो कभी शिकारी कुत्तों की तरह उनका मांस नोंच डालता। लेकिन महावीर फिर भी स्थिर और अडिग रहे। आखिर उसकी धृष्टता दूर हुई। उसकी दुष्टता महावीर की साधुता से भिड़ कर, टकराकर निस्तेज हो गई। वह हतप्रभ हो गया तथा उसे अपने आप से घृणा हो गई। उसने प्रभु महावीर के समक्ष क्षमा मांगी। महावीर ने उसे अभयदान दिया। प्रातःकाल जब ग्रामवासी आए तो वहाँ पर बड़ा शान्त वातावरण था। यक्ष श्रमण महावीर की उपासना में निमग्न था। पूरा गाँव हर्ष से श्रमण महावीर की विजय-गाथा गाने लगा। (त्रिषष्टि०, १०/३)। अहिंसा की अमृत वर्षा श्रमण महावीर सुवर्ण बालुका नदी के पास कनकखल नामक आश्रम पाद से गुजर रहे थे। उन्होंने पीछे से आते हुए कुछ ग्वालों की भयाक्रान्त पुकार सुनी। उन्होंने कहा- "देव! आप रुक जायें, आगे न बढ़ें, इस रास्ते पर एक भयावह काला नाग रहता है, जिसने अपनी विष-ज्वाला से अगणित राहगीरों को भस्मसात कर डाला है। हजारों पशु-पक्षी व पेड़-पौधे उसकी विषाग्नि से जलकर राख हो गए हैं।'' महावीर दो क्षण रुक गए। उन्होंने अपना अभयसूचक हाथ ऊपर उठाया, जैसे संकेत दे रहे हों कि तुम घबराओ नहीं। गाँव वालों ने उन्हें पुन: समझाया पर महावीर धीर-गम्भीर गति से आगे बढ़ते गये। उस नाग की बांबी के पास एक प्राचीन देवालय था, वे वहीं पहुँचकर ध्यानमग्न हो गए। जंगल में घूमता हुआ वह सर्प अपनी बांबी के पास पहुँचा तथा वहाँ देवालय में एक मनुष्य को निश्चल खड़ा देख आश्चर्यचकित हो गया। साथ ही उसे भयंकर क्रोध भी आया। उसने अपनी विषमयी तीव्र दृष्टि से महावीर की ओर देखा, अग्निपिण्ड से जैसे ज्वालाएँ निकलती हैं वैसे ही उसकी आँखों से तीव्र विषमयी ज्वालाएँ निकलने लगीं। साधारण मनुष्य तो उनसे जलकर खाक हो जाता पर महावीर पर उनका कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy