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प्रभाव नहीं पड़ा। उसने बार-बार उन पर प्रहार किया पर महावीर अविचल ध्यान में निमग्न रहे। आखिर उसने एक तीव्र दंश उनके अंगूठे पर मारा। लेकिन यह भी निष्फल गा.. उल्टे वहाँ से दूध की धारा बहने लगी।
महावीर का अब ध्यान पूर्ण हुआ। उन्होंने चण्डकौशिक को उद्बोधन देते हुए कहा- “चंडकौशिक समझो! समझो! अब शान्त हो जाओ। अपना क्रोध शान्त करो।'' महावीर के अमृत-वचन सुनकर नागराज का क्रोध पानी पानी हो गया। वह विचारों की गहराई में उतरा तो उसे जाति स्मरण ज्ञान प्राप्त हो गया। तीव्र क्रोध के कारण उसने पूर्व जन्मों में कितने-कितने कष्ट उठाये, वह उसे स्मरण हो आया। वह शान्त होकर बार-बार उनके चरणों में लिपटकर क्षमा मांगने लगा। प्रातःकाल गाँव वालों ने यह दृश्य देखा तो वे आश्चर्यचकित हो उठे तथा प्रभु का गुणगान करने लगे।
अहिंसा, अभय और मैत्री का यह एक ज्वलन्त उदाहरण है (त्रिषष्टि ०,१०/३)।
साधना की अग्निपरीक्षा- साधना का ग्यारहवाँ वर्ष प्रारम्भ हुआ। श्रमण महावीर ने श्रावस्ती में वर्षावास किया। यहाँ पर ध्यान एवं योग की अनेक प्रक्रियाओं द्वारा उन्होंने साधना को और भी प्रखर बनाया। तीन दिन का उपवास करके श्रमण महावीर पेढ़ाल उद्यान में कायोत्सर्ग मुद्रा तथा उत्कृष्ट ध्यान-प्रतिमा में लीन थे। उनके तन-मन व प्राण अकम्प तथा स्थिर थे। उसी समय एक देव संगम उनकी अग्निपरीक्षा लेने आ पहुँचा। एक ही रात्रि में उस देव ने श्रमण महावीर को इतनी यातनाएँ दीं; इतने प्राणघातक कष्ट दिये कि वज्र-हृदय भी दहल जाये; किन्तु परमयोगी महावीर का एक रोम भी प्रकम्पित नहीं हुआ।
महावीर ध्यान की सर्वतोभद्र प्रतिमा में लीन थे। अचानक सायं-सायं की आवाज से दिशाएँ काँप उठीं। भयंकर धूल भरी आंधी से महावीर के शरीर पर मिट्टी के ढेर जम गए पर महावीर ने अपने निश्चय के अनुसार आँखों की पलकें भी बन्द नहीं की।
आँधी शान्त हुई कि तीक्ष्ण मुख वाली चीटियाँ चारों ओर से महावीर के शरीर को काटने लगीं। तन छलनी सा हो गया पर मन वज्र सा दृढ़ रहा।
तभी मच्छरों का समूह महावीर के शरीर को काट-काट कर उनका रक्त चूसने लगा। फिर दीमकें महावीर के पूरे शरीर पर लिपट गईं तथा भयंकर दंश मारकर काटने लगीं। पर महावीर विचलित नहीं हुए।
फिर बिच्छुओं द्वारा तीव्र दंश प्रहार किया जाना, नेवलों द्वारा मांस नोचा जाना, विषधर सो द्वारा स्थान-स्थान पर डंक मारा जाना तथा तीखे दाँत वाले चूहों द्वारा उनके शरीर को काटा जाना आदि प्रारम्भ हुए पर वे सर्वथा अकम्पित, अविचलित बने रहे।
इस प्रकार के बीस घोर उपसर्ग महावीर पर आये पर संकल्प के धनी महावीर
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