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________________ घटना नहीं मिलती। वर्द्धमान को कभी-कभी किन्हीं स्थानों पर ठहरने व ध्यान करने की भी अनुमति नहीं मिलती थी, किन्हीं-किन्हीं गांवों में वे जाते तो उन्हें तुरन्त वापस जाने को कह दिया जाता था। अत: उन्होंने निम्नलिखित नियम लिये - भविष्य में अप्रीतिकारक स्थान पर नहीं रहूँगा। ध्यान में सतत् लीन रहूँगा। सदा मौन रक्लूंगा। हाथ से ग्रहण करके भोजन करूँगा। गृहस्थ का विनय नहीं करूँगा।। साधना-काल में उनके जीवन में जो उपसर्ग आए, उनका कुछ विवरण यहाँ प्रस्तुत है - अभय की उत्कृष्ट साधना- श्रमण वर्द्धमान विहार करते हुए एक छोटे से गाँव "अस्थिक ग्राम'' में आये। वहाँ आस-पास का वातावरण बड़ा ही भयावह एवं हृदय को कंपा देने वाला था। गाँव के बाहर शूलपाणि यक्ष का मन्दिर था। एकान्त स्थान देखकर भगवान् ने गाँव वालों से वहाँ ठहरने की अनुमति माँगी। महावीर की दिव्य, सौम्य आकृति को देखकर लोगों के हृदय द्रवित हो गए। उन्होंने कहा- "देव! आप अन्यत्र ठहर जायें। यहाँ एक यक्ष रहता है जो बड़ा क्रूर है। रात में किसी को यहाँ ठहरने नहीं देता। उसे भयंकर यातना देकर मार डालता है।'' महावीर यह सुनकर भी डरे नहीं और उन्होंने वहीं ठहरने का संकल्प किया तथा पुनः आज्ञा मांगी। तब ग्रामवासियों ने महावीर को यक्ष से सम्बन्धित निम्नांकित घटना सुनाई "देव! कुछ वर्षों पूर्व की घटना है। यहाँ से धनदत्त नामक व्यापारी पाँच सौ गाड़ियों में सामान लेकर गुजर रहा था। वर्षा के कारण उसकी गाड़ियाँ यहाँ पर कीचड़ में फंस गईं। बैल उनको खींच नहीं सके. पर उसके पास हाथी की तरह बड़ा ही बलवान एवं पुष्ट कन्धों वाला एक बैल था। उस एक ही बैल ने धीरे-धीरे पाँच सौ गाड़ियों को कीचड़ से निकाल कर बाहर कर दिया, पर अत्यधिक परिश्रम के कारण वह बैल थक कर चूर हो गया तथा भूमि पर गिर पड़ा। व्यापारी ने अनेक प्रयत्न किये पर बैल खड़ा नहीं हो सका। तब व्यापारी ने गाँव वालों को एक बड़ी धनराशि दी तथा बैल की सेवा-परिचर्या का भार उन्हें सौंपकर वह आगे रवाना हो गया। गाँव वाले उस व्यापारी ' का सारा धन हजम कर गये तथा उन्होंने बैल की कोई सेवा-शुश्रूषा नहीं की, न ही उसे खाने को कुछ दिया। भूखे-प्यासे सन्तप्त बैल ने एक दिन अपने प्राण छोड़ दिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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