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को दुःखी करने से बचाओ।
प्रथम अंक में मृगयाव्यसनी राजा दुष्यन्त की दृष्टि हिरण में सौन्दर्य की खोजकर उसकी भाव-भंगिमाओं पर मुग्ध होती है। वह हिरण को देखकर कहता है- “सूत! इस मृग से हम दूर तक आकृष्ट होते हुए खींच लाए गए हैं
देखो! (इस समय भी यह सामने दिखाई देने वाला मृग) पीछा करते हुए रथ पर गर्दन मोड़ने के कारण बार-बार देखने पर सुन्दर प्रतीत होता है। बाण के लगने के भय से अपने शरीर के पिछले आधे भाग से अत्यधिक अपने आगे के भाग में प्रविष्ट होकर आधे चबाए गए दर्शों से मार्ग को व्याप्त करता है और अत्यधिक ऊँचा और लम्बा कूदने के कारण आकाश में अधिक और पृथ्वी पर कम जा रहा है।"
अन्तत: यह स्पष्ट है कि महाकवि कालिदास ने आखेट का चित्रण कर हिंसा को दर्शाकर, आखेट की निन्दा कर समस्त प्राणियों के लिए अहिंसा का मार्ग प्रशस्त करने का अपने इस नाटक में सतत् प्रयास किया है और अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक की कथावस्तु में सभी जीव-जन्तुओं के प्रति स्निग्ध दृष्टि व अहिंसा और रक्षा प्रदान किये जाने का भाव विद्यमान है।
सभी प्रसङ्ग मूल कथानक में नहीं थे, अत: नये कथानक कवि की सुन्दर परिकल्पना हैं। किसी भी कृति पर उसके रचनाकार के अपने व्यक्तित्व की स्पष्ट छाप होती है, यह सत्य नितान्त सत्य है और इस दृष्टि से उपर्युक्त सम्पूर्ण विवेचन के आधार पर निष्कर्षत: हम यह कह सकते हैं कि महाकवि कालिदास का हृदय पशु-पक्षियों के प्रति अगाध प्रेम भाव से परिपूर्ण परिलक्षित होता है। मृगया की विस्तृत निन्दा करवाकर उसमें अनेक दोषों को सिद्ध किया गया है। कवि की दृष्टि में यह न केवल मात्र वन्य पशुओं की हिंसा की दृष्टि से निन्दनीय है, अपितु दिवस में गर्मी की लू-धूप में भ्रमण का व्यर्थ श्रम, विश्राम का अभाव, समस्त अंगों व अस्थियों के जोड़ों में दर्द उत्पन्न करने वाला व असमय और अपर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के कारण भी दोषपूर्ण है तथा समस्त भौतिक विलासों के परिसाधनों से सम्पन्न राजा दुष्यन्ततुल्य मृगया व्यसनियों के लिए सन्देश भी है कि कोई सबल व समर्थ निर्बल व निरपराध प्राणी पर शस्त्र न उठाए, वस्तुत: अस्त्र-शस्त्र का उपयोग निरपराध की रक्षा के लिए ही किया जाए। इसमें ही सामर्थ्यवान् व सबल के गुणों का आधिक्य व गौरव है। समस्त वन्य प्राणियों में डर, प्रेम, मैत्री, हिंसा, सौन्दर्य आदि हाव-भाव व गुण मानव समान हैं। अत: ये सभी मूक निरपराध प्राणी प्रहार करने वालों से रक्षा किए जाने के योग्य हैं। ___वन्य पशुओं की हिंसा व अन्य प्रकार की हिंसा से भरे आज के परिवेश में भी महाकवि कालिदास का अभिज्ञानशाकुन्तलम् के माध्यम से दिया गया अहिंसा का यह सन्देश पूर्ण सामयिक व ग्राह्य है।
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