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शब्दशक्ति, रस, रीति, गुण, छन्द, अलङ्कार आदि साहित्यिक साधनों का अपने इस महाकाव्य में उन्होंने यथाप्रसंग समीचीनता से विनिवेश किया है, फलत: भारतीय समाज के सम्पूर्ण इतिहास और समस्त संस्कृति के मनोरम तात्त्विक रूपों का एकत्र समाहार सुलभ हुआ है। भारतीय कला के स्वरूप के साङ्गोपाङ्ग निरूपण के लिए महाकवि जिनसेन के प्रस्तुत काव्य-साहित्य से बिम्बविधायक सौन्दर्य-सिक्त भावों और रमणीयार्थ के बोधक शब्दों, अर्थात् उत्कृष्ट वागर्थ का आदोहन केवल हिन्दी-साहित्य ही नहीं, अपितु समस्त भारतीय साहित्य के लिए अतिशय समृद्धिकारक है।
आदिपुराण जैसे कामधुक् महाकाव्य से कला का मार्मिक ज्ञान और साहित्यिक अध्ययन-दोनों की सारस्वत तृषा बखूबी मिटायी जा सकती है; क्योंकि इस काव्यग्रन्थ में इतिहास और कल्पना के अतिरिक्त काव्य और कला- दोनों के योजक रस-तत्त्व की समान रूप से उपलब्धि होती है। आचार्य जिनसेन ने वैभव-मण्डित राजकुलाचार एवं समृद्ध लोकजीवन की उमंग से उद्भूत काव्य, साहित्य और कला के सौन्दर्यमूलक तत्त्वों की एक साथ अवतारणा की है। इसके अतिरिक्त प्रस्तुत महाकाव्य की रचना-प्रक्रिया में शृङ्गार से शान्त की ओर प्रस्थिति उन आचार्य जैन कवियों की चिन्तनगत विशेषता की ओर संकेत करती है, जिसमें कामकथा का अवसान बहुधा धर्मकथा में किया जाता है और धर्मकथा का प्रचार-प्रसार ही इस प्रकार की काव्यकथा का मूल उद्देश्य होता है।
आदिपराण की कथाओं में समाहित कला-तत्त्व की वरेण्यता के कारण ही इस काव्य का साहित्यिक सौन्दर्य अपना विशिष्ट मल्य रखता है। सौन्दर्य-विवेचन में. विशेषत: नख-शिख के सौन्दर्योदावन में महाकवि जिनसेन ने उदात्तता ('सब्लाइमेशन') की भरपूर विनियुक्ति की है।
विजयार्ध पर्वत के तट को आक्रान्त कर प्रवाहित होने वाली गंगा नदी के सौन्दर्याङ्कन (पर्व २६) में उदात्तता का उत्कर्ष दर्शनीय है, जिसमें उपमा-बिम्ब की रमणीयता बरबस मन को मोह लेती है। वह गंगा नदी रूपवती स्त्री के समान थी; क्योंकि मछलियाँ ही उसकी चंचल आँखें थीं। उठती हुई तरंगें उसकी नर्तनशील भौंहों के समान थीं। नदी के उभय तटवर्ती वनपंक्ति ही उसकी साड़ी थी। मुखरित हंसमाला उसकी, बजते धुंघरुओं वाली करधनी के समान थी। लहरें ही उसके लहराते वस्त्र थे। अपना वाग्वैदग्ध्य प्रदर्शित करते हुए महाकवि ने गंगा को “समांसमीना' विशेषण से मण्डित किया है। गंगा 'समांसमीना' गाय के समान थी। 'समांसमीना' का अर्थ है -- वह उत्तम गाय, जो प्रतिवर्ष बछड़े को जन्म देती है ('समां समां वर्ष वर्ष विजायते प्रसूते' इति -निपातसिद्ध शब्द)। इसी प्रकार, गंगा भी 'समांसमीना' है, अर्थात् मांसल या परिपुष्ट मछलियों वाली है। पुनः उत्तम गाय में जैसे पर्याप्त पय, अर्थात् दूध होता है, वैसे ही गंगा में पर्याप्त पय, अर्थात् जल है और फिर, उत्तम गाय जैसे धीरे स्वर में {भाती
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