SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खरतरगच्छ- लघुशाखा का इतिहास शिव प्रसाद खरतरगच्छ से समय-समय पर उद्भूत विभिन्न शाखाओं में लघुशाखा का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। आचार्य जिनेश्वरसूरि के शिष्य आचार्य जिनसिंहसूरि से यह शाखा अस्तित्त्व में आयी। विक्रम सम्वत् की चौदहवीं शताब्दी में जैनधर्म के महान् प्रभावक और दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुगलक ( ई० सन् १३२५-१३५१) के प्रतिबोधक आचार्य जिनप्रभसूरि इन्हीं के शिष्य एवं पट्टधर थे । खरतरगच्छ की इस शाखा में जिनदेवसूरि, जिनमेरुसूरि, जिनहितसूरि, जिनसर्वसूरि, जिनचन्द्रसूरि 'द्वितीय', जिनसमुद्रसूरि, जिनतिलकसूरि, जिनराजसूरि, उपा० कल्याणराज, मुनि चारित्रवर्धन, जिनचन्द्रसूरि 'तृतीय' आदि कई प्रभावक और विद्वान् मुनिजन हो चुके हैं। विक्रम संवत् की १७वीं - १८वीं शती तक खरतरगच्छ की इस शाखा का अस्तित्त्व रहा, बाद में इसके अनुयायी श्रावकगण आचार्य जिनरंगसूरि द्वारा प्रवर्तित जिनरंगसूरिशाखा में सम्मिलित हो गये। खरतरगच्छ की इस शाखा के इतिहास के अध्ययन के लिये सम्बद्ध मुनिजनों द्वारा रचित कृतियों की प्रशस्तियों तथा इसी परम्परा के किसी अज्ञात रचनाकार द्वारा रचित वृद्धाचार्यप्रबन्धावली' का उल्लेख किया जा सकता है। जहां तक अभिलेखीय साक्ष्यों का प्रश्न है इस शाखा से सम्बद्ध प्रतिमालेख वि० सं० १४४७ से वि०सं० १५९७ तक के हैं, तथा उनकी संख्या भी स्वल्प ही है, फिर भी इस शाखा के इतिहास अध्ययन के सन्दर्भ में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। साम्प्रत निबन्ध में उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इस शाखा के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। खरतरगच्छ की लघुशाखा के आदिपुरुष आचार्य जिनसिंहसूरि द्वारा रचित न तो कोई साहित्यिक कृति प्राप्त होती है और न ही किसी प्रतिमालेखादि में उनका नाम ही मिलता है, किन्तु उनके शिष्य एवं पट्टधर आचार्य जिनप्रभसूरि अपने समय के उद्भट विद्वान् थे। उनके द्वारा अनेक कृतियाँ मिलती हैं जिनमें उन्होंने अपने गुरु जिनसिंहसूरि का सादर उल्लेख किया है। अपनी विद्वत्ता एवं चारित्र से इन्होंने दिल्ली के तत्कालीन सुलतान मुहम्मद तुगलक को प्रभावित कर उससे जैन तीर्थों की रक्षा का फरमान भी जारी कराया। इन्होंने जैन आगम, जैन साहित्य, न्याय, दर्शन, व्याकरण, काव्य, प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी. *. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy