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________________ ५२ अलङ्कार, छन्दशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर अनेक कृतियों की रचना की है। इनके द्वारा रचित कल्पप्रदीप अपरनाम विविधतीर्थकल्प और विधिमार्गप्रपा जैन साहित्य की अमूल्य निधि है। ऐसा माना जाता है कि इन्होंने ७०० से ऊपर स्तोत्रों की रचना की, तथापि आज १०० के लगभग ही प्राप्त होते हैं। ___ आचार्य जिनप्रभसूरि के शिष्य एवं पट्टधर जिनदेवसूरि हुए। इनके द्वारा रचित कालकाचार्यकथा, शिलोच्छनाममाला आदि कृतियाँ प्राप्त होती हैं। जिनदेवसरि के शिष्य जिनमेरुसूरि हुए जिनके द्वारा रचित न तो कोई कृति प्राप्त होती है और न ही इन्होंने किसी प्रतिमा आदि की प्रतिष्ठा की। खरतरगच्छ से सम्बद्ध वि० सं० १४४७ में प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ की धातु की एक प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख में जिनमेरुसूरि के शिष्य जिनहितसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख मिलता है। आचार्य बुद्धिसागरसूरि ने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है : संवत् १४४७ फाल्गुन सुदि ८ सोमे श्रीमालवंशे ढोरगोत्रे ठ० रतनपु० नरदेवभार्यावा० नान्हीपु० ठ० धिरियारामकर्मसीहटीलादिभि; श्रीपार्श्वनाथसहिता पंचतीर्थी का०प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनमेरुसूरिपट्टे श्रीजिनहितसूरिभिः।। पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, आदिनाथ जिनालय, मांडवीपोल, खंभात यद्यपि इस लेख में कहीं भी खरतरगच्छ की लघुशाखा का उल्लेख नहीं है, फिर भी समसामयिकता, नामसाम्य, गच्छसाम्य आदि को देखते हुए इस लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक जिनहितसूरि के गुरु के रूप में उल्लिखित जिनमेरुसूरि एवं आचार्य जिनप्रभसूरि के प्रशिष्य और जिनदेवसूरि के शिष्य जिनमेरुसूरि एक ही व्यक्ति माने जा सकते हैं। जिनसिंहसूरि (लघुशाखा के प्रवर्तक) जिनप्रभसूरि जिनदेवसूरि जिनमेरुसूरि जिनहितसूरि (वि०सं० १४४७/ई०स० १३८१ में पार्श्वनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक) जिनहितसूरि द्वारा रचित वीरस्तव और तीर्थमालास्तव नामक कृतियां प्राप्त होती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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