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________________ ४७ ४७ ऋषीणामभिगभ्यश्च सूत्रकर्ता सुतस्तव । मत्प्रसादाद्विजश्रेष्ठ भविष्यति न संशयः।। कं वा कामं ददाम्यद्य ब्रूहि यद्वत्स काङ्क्षसे। प्राञ्जलिः स उवाचेदं त्वयि भक्तिर्दृढास्तु मे।। - अनुशासनपर्व, १६वां अध्याय, श्लोक ६७-७० आगे के श्लोकों में उपमन्यु ने भगवान् श्रीकृष्ण से कहा कि महर्षि तण्डि द्वारा प्रवेदित दस सहस्र नामों का भक्तिपूर्वक स्मरण-अनुस्मरण बड़ा सिद्धिदायक होता है। सत्रहवें अध्याय में ही भगवान् श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को वेद-वेदाङ्ग से प्रगट हुए इन नामों की स्तुति करने का आवाहन किया और उसी के फलस्वरूप हजार नाम वाले शिवस्तोत्र की प्रस्तुति इस अध्याय में हुई। इसे यहां "प्रवदं प्रथम स्वयं सर्वभूतहितं शुभम्' कहा है। इस उल्लेख से निम्न तथ्य सामने आते हैं१. शिवस्तोत्र वेद-वेदाङ्ग में आये नामों पर आधारित है। २. तण्डि ऋषि तत्त्वदर्शी थे। ३. यह शिवस्तोत्र प्रथम शिवस्तोत्र है। ४. यह स्तोत्र सकल प्राणियों के लिये हितकारी है। ५. इससे भक्ति तत्त्व की प्रस्थापना हुई। इन तत्त्वों के आधार को जब हम जैन साहित्य में खोजने का प्रयत्न करते हैं तो आचार्य जिनसेन की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट हो जाता है। वे कर्नाटकवासी प्रसिद्ध दिगम्बराचार्य रहे। मूलत: वे ब्राह्मण कुलोत्पन्न वेद-वेदाङ्ग के गहन अभ्यासी विद्वान् थे। जैनधर्म में दीक्षित होने के बाद स्वभावत: उनके चिन्तन और लेखन में पूर्व अध्ययन और संस्कार जागृत रहे जो परिष्कृत और परिनिष्ठित होकर जैनधर्म पर प्रभावी हुए। इसी प्रभाव के कारण जैनधर्म काफी सीमा तक वैदिक साहित्य और संस्कृति से प्रभावित हुआ। उनका संस्कृत में लिखा आदिपुराण इस सन्दर्भ में विशेष उल्लेखनीय है। उन्होंने इसकी रचना नवमीं शती के पूर्वार्द्ध में राष्ट्रकूट काल में वाटग्राम में की। यह वाटग्राम सम्भवत: कांची होना चाहिए, ऐसा विद्वानों का अभिमत है। आचार्य जिनसेन ने अपने आदिपुराण में तीर्थङ्कर ऋषभदेव के चरित्र का विस्तार से पच्चीस पर्यों में वर्णन किया है। इसमें ऋषभदेव का सारा इतिवृत्त और उनके द्वारा प्रवेदित जैनधर्म का जो प्रारूप उपलब्ध होता है उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि वेदों में उपलब्ध वातरशनाः, दिग्वासः, वातवल्कला: आदि जैसे शब्द मूलतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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