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________________ दीपक सम्यक्त्व का लक्षण सयमिह मिच्छादिट्टि धम्म कहाहिं दीवई परस्स। दीवग समत्तमिणं, भणंति तुह समयं निउणो।।१५।। इस सम्यक्त्व में मिथ्यादृष्टि जीव भी धर्मकथादि के द्वारा स्वयं को तथा दूसरों को प्रकाशित करने का प्रयत्न व अभ्यास करता है (ताकि मिथ्यात्व से छूट सके)। ऐसे सम्यक्त्व को शास्त्रों के ज्ञाता पण्डितों ने दीपक सम्यक्त्व कहा है। अपुष्वकरण तिपुंजो, मिच्छमुईन्नं खवितु अणुईनं। उवसमियानियट्टीकरण उपरं खउवसमीयं।।१६।। अपूर्वकरण के तीन पुंज हैं- मिथ्यात्व, सम्यक्त्व एवं मिश्र। मिथ्यात्व के पन: उदय में आते ही उसका क्षय करने से उपशम सम्यक्त्व और उपशम सम्यक्त्व से अनिवृत्तिकरण होने पर क्षायोपशमिक सम्यक्त्व होता है। अकय तिपुंजो, ऊसर-देवईलिय दढ रुखु नाएहिं। अंतरकरणुवसमिउ, उवसमिउवास सेणि गउ।।१७।। जिस तरह तीन अकृत-पुंज होते हैं अर्थात् ऊसर भूमि, जला हुआ वृक्ष तथा जंगल की अग्नि- इन तीनों में कोई कार्य आगे नहीं किया जा सकता। उसी तरह उपशम श्रेणी पर चढ़ा हुआ जीव अन्तःकरण (परिणाम) की विशुद्धता को प्राप्त कर लेता है। क्षायिक सम्यक्त्वमिच्छाइ खए खईउ सो, सत्तग खीणिवाई बद्धा जा चउ ति भव भावि मुक्को, तज्झव सिद्धीय ईय रोय।।१८।। मिथ्यात्व का क्षय करने से क्षायिक सम्यक्त्व होता है। सात प्रकार की प्रकृतियों के क्षय से तद्रव में बन्धन से मुक्त होकर जीव सिद्धि को प्राप्त होता है अथवा (सम्यग्दर्शनपूर्वक आयु बंध किया है तो भी) चार या तीन भव के बाद वह नियम से मुक्त होकर सिद्धि को प्राप्त कर लेता है। चउहा उ सासाणं गुडाईव मणुष्व माल पडणुंव्व। उवसमिया पडतो, सासाणो मिच्छमणपत्ता।।१९।। जीव को चार प्रकार (अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ- इन चार कषायों) से सासादन (द्वितीय गुणस्थान) होता है। मीठी वस्तु के वमन और मालारोहण (सीढ़ी से गिरने की स्थिति) की तरह सासादन वाला जीव उपशम श्रेणी से गिरकर मिथ्यात्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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