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परमार्थ को न जानते हए भी आपके वचनों में तत्त्व रुचि होना द्रव्यगत सम्यक्त्व है और (तत्त्वरुचि रखते हुए) परमार्थ को जानना भावगत सम्यक्त्व है। निश्चय एवं व्यवहार सम्यक्त्व
निच्छयउ सम्मत्तं, नाणाइमय सुहपरिणामो।
ईयर पुण तुह समए, भणियं समत्त हेऊहिं।।११।। निश्चय सम्यक्त्व ज्ञानादि से युक्त शुभ परिणाम है (अत: उपादेय है) और इससे इतर अर्थात् दूसरा व्यवहार सम्यक्त्व हेय (त्यागने योग्य) बताया है। निसर्ग एवम् उपदेश सम्यक्त्व
जल वत्थ मग्गऊ द्दव जराइ नाएहिं जेण पण्णत्त।।
निसग्गुवएस भवं सम्मत्तं तस तुज्झ नमो।।१२।। जैसे जल वस्त्र से (छानकर आदि प्रयत्नों से), मार्ग (जमीन, रास्ता) गोबरादि के लीपने से तथा रोगादि का औषधि के निमित्त से शमन होता है। वैसे ही निसर्ग (स्वाभाविक) तथा दूसरा परोपदेश (अधिगमज) से होने वाला सम्यक्त्व है। हे सम्यक्त्व! तुम्हें नमस्कार है।
सम्यक्त्व के तीन भेदतिविहं कारग रोयग, दीवग, भेएहिं तुह मय विऊहिं। खाउवसमोवसमिय, खाईय भेए वा कहियं।।१३।।
वह सम्यक्त्व कारक, रोचक,दीपक- भेद से तीन प्रकार का अथवा इसे क्षयोपशम, उपशम, क्षायिक तरह तीन भेद रूप से तीन प्रकार का विद्वानों ने कहा है।
कारक और रोचक सम्यक्त्व का लक्षण
जं जह भणियं तु मए, तं तह करणेमि कारगं होई। - रोयग सम्मत्तं पुण रुई मित्तकरं तु तुह धम्मे।।१४।।
मैंने सम्यक्त्व के जो तीन भेद कहे हैं उनमें करण रूप से कारक सम्यक्त्व होता है। पुन: धर्म तत्त्व में भलीभाँति रुचि और मित्रता का भाव करने वाला रोचक सम्यक्त्व कहलाता है।
५. विस्तार के लिए देखिए – विशेषावश्यकभाष्य, गाथा २६७५.
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