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१७. प्रवचनसार, परमश्रुत प्रभावक श्रीमद् राजचन्द्र जैन शास्त्रमाला, अगास १९६४; १/५८-५९.
१८. एवं खलु पएसी ! अम्हं समणाणं निग्गंथाणं पंचविहे नाणे पण्णत्ते, तंजहाआभिणिबोहियणाणे सुयणाणे ओहिणाणे मण पज्जवणाणे केवलणाणे | राजप्रश्नीयसूत्र, सम्पा०- युवाचार्य मधुकरमुनि, श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, ग्रन्थाङ्क-१५, २४१.
१९. तत्थ णं जे से आभिणिबोहियनाणे से णं ममं अत्थि, तत्थ णं जे से सुयनाणे सेवि य ममं अत्थि, तत्थ णं जे से अहिणाणे से वि य ममं अत्थि, तत्थ णं जे से मणपज्जवनाणे से वि य ममं अत्थि, तत्थ णं जे से केवलणाणे से णं ममं नत्थि, से णं अरिहंताणं भगवंताणं । वही
२०. स्थानांगसूत्र, सम्पा०- युवाचार्य मधुकर मुनि श्री आगम प्रकाशन समिति,
ब्यावर १९८१; ५/३/२१८.
२१. व्याख्याप्रज्ञप्ति, सम्पा०- • युवाचार्य मधुकर मुनि, श्री आगम प्रकाशन समिति,
ब्यावर १९८३ ८/२/२२.
२२. मतिश्रुताऽवधिमन: पर्यायकेवलानि ज्ञानम् । तत्त्वार्थसूत्र, विवे० पं० सुखलाल संघवी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी १९७६, १ / ९.
२३. स्थानांगसूत्र, २/१/८६-१०६.
२४. व्याख्याप्रज्ञप्ति, ८ / २ / २२-२६.
२५. राजप्रश्नीयसूत्र, २४१.
२६. आगमयुग का जैनदर्शन, पं० दलसुखभाई मालवणिया, सन्मति ज्ञानपीठ,
आगरा १९६६, पृ०-१३०.
२७. नन्दीसूत्र, सम्पा०
युवाचार्य मधुकर मुनि श्री आगम प्रकाशन समिति,
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ब्यावर, १९८२, पृ०-२४-३०.
२८. आगमयुग का जैनदर्शन, पृ० १२९.
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३०. वही,
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२९. स्थानांगसूत्र (मधुकर मुनि) की भूमिका, पृ० ३१-३२.
३२. आगमयुग का जैनदर्शन, पृ० - २८.
आचार्य महाप्रज्ञ,
३३. भगवई, सम्पा०पृ०-१७.
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जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं १९९४;
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