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________________ २६ १७. प्रवचनसार, परमश्रुत प्रभावक श्रीमद् राजचन्द्र जैन शास्त्रमाला, अगास १९६४; १/५८-५९. १८. एवं खलु पएसी ! अम्हं समणाणं निग्गंथाणं पंचविहे नाणे पण्णत्ते, तंजहाआभिणिबोहियणाणे सुयणाणे ओहिणाणे मण पज्जवणाणे केवलणाणे | राजप्रश्नीयसूत्र, सम्पा०- युवाचार्य मधुकरमुनि, श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, ग्रन्थाङ्क-१५, २४१. १९. तत्थ णं जे से आभिणिबोहियनाणे से णं ममं अत्थि, तत्थ णं जे से सुयनाणे सेवि य ममं अत्थि, तत्थ णं जे से अहिणाणे से वि य ममं अत्थि, तत्थ णं जे से मणपज्जवनाणे से वि य ममं अत्थि, तत्थ णं जे से केवलणाणे से णं ममं नत्थि, से णं अरिहंताणं भगवंताणं । वही २०. स्थानांगसूत्र, सम्पा०- युवाचार्य मधुकर मुनि श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर १९८१; ५/३/२१८. २१. व्याख्याप्रज्ञप्ति, सम्पा०- • युवाचार्य मधुकर मुनि, श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर १९८३ ८/२/२२. २२. मतिश्रुताऽवधिमन: पर्यायकेवलानि ज्ञानम् । तत्त्वार्थसूत्र, विवे० पं० सुखलाल संघवी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी १९७६, १ / ९. २३. स्थानांगसूत्र, २/१/८६-१०६. २४. व्याख्याप्रज्ञप्ति, ८ / २ / २२-२६. २५. राजप्रश्नीयसूत्र, २४१. २६. आगमयुग का जैनदर्शन, पं० दलसुखभाई मालवणिया, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा १९६६, पृ०-१३०. २७. नन्दीसूत्र, सम्पा० युवाचार्य मधुकर मुनि श्री आगम प्रकाशन समिति, 3 ब्यावर, १९८२, पृ०-२४-३०. २८. आगमयुग का जैनदर्शन, पृ० १२९. ही ३०. वही, • 30. २९. स्थानांगसूत्र (मधुकर मुनि) की भूमिका, पृ० ३१-३२. ३२. आगमयुग का जैनदर्शन, पृ० - २८. आचार्य महाप्रज्ञ, ३३. भगवई, सम्पा०पृ०-१७. Jain Education International जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं १९९४; For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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