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फिर वह ईहा, अवाय होते हुए धारणा का रूप धारण करता है। जहाँ तक मन और इन्द्रिय के व्यापार का प्रश्न है तो मन के व्यापार में इन्द्रिय का व्यापार होता भी है
और नहीं भी होता है; किन्तु इन्द्रिय के व्यापार में मन का व्यापार अवश्य होता है। मन का व्यापार एक काल में एक इन्द्रिय के साथ ही होता है। श्रुतज्ञान
श्रुत अर्थात् सुना हुआ। श्रुत शब्द 'श्रु' धातु से निष्पत्र है। शब्द और अर्थ के सम्बन्ध से जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसे श्रुतज्ञान कहते हैं। यह ज्ञान आप्तवचनों या प्रामाणिक ग्रन्थों में मिलता है; किन्तु श्रुतज्ञान के पूर्व इन्द्रियज्ञान का होना आवश्यक है, क्योंकि श्रुतज्ञान मतिपूर्वक होता है। केवल मात्र कानों से सुना हुआ शब्द ही श्रुत नहीं होता। आचार्य जिनभद्र के अनुसार वक्ता या श्रोता का वही ज्ञान श्रुत है जो श्रुतानुसारी है। जो ज्ञान श्रुतानुसारी नहीं है, वह मति है। श्रुतानुसारी का अभिप्राय हैशब्द व शास्त्र के अर्थ की परम्परा का अनुसरण करनेवाला।५७
नन्दी में मति और श्रत को अविभाज्य माना गया है। कहा गया है- जहाँ मति होती है वहाँ श्रुत होता है और जहाँ श्रुत होता वहाँ मति होती है। नन्दी की यह मान्यता कई दृष्टियों से प्रमाणित है- (१) नन्दी में अभिनिबोधिक के दो भेद किये गये हैंश्रुतनिःसृत और अश्रुतनिःसृत इसमें श्रुतनिःसृत ज्ञान उभयात्मक है। इन्द्रियजन्य होने के कारण श्रुत भी है। (२) जैन दर्शन की यह मान्यता है कि प्रत्येक जीव में दो ज्ञान होते ही हैं, भले ही वह जीव एकेन्द्रिय हो या पञ्चेन्द्रिय, अत: मति और श्रुत सहचरी हैं। किन्तु आचार्य उमास्वाति का दृष्टिकोण इससे कुछ भिन्न है। उनका कहना है कि श्रुतज्ञान के पूर्व मतिज्ञान को हर दशा में आने के कारण श्रुतज्ञान का मतिज्ञान के साथ नियत सहभाव है। जिस वस्तु का श्रुतज्ञान होता है उसका मतिज्ञान होना निश्चित है; किन्तु इसका विलोम सत्य नहीं है। जिसका मतिज्ञान होता है उसका श्रुतज्ञान हो भी सकता है और नहीं भी।५८ आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार ज्ञान दो प्रकार के होते हैंअर्थाश्रयी और श्रुताश्रयी। पानी को देखकर आँख को पानी का ज्ञान होता है, यह अर्थाश्रयी ज्ञान है। पानी शब्द के द्वारा जो 'पानी द्रव्य का ज्ञान होता है, वह श्रुताश्रयी ज्ञान है। इन्द्रियों को सिर्फ अर्थाश्रयी ज्ञान होता है। मन को दोनों प्रकार का ज्ञान होता है। 'पानी' शब्द मात्र को सुनकर जान लेना; किन्तु पानी का अर्थ क्या है, पानी शब्द किस वस्तु का वाचक है- यह श्रोत्र नहीं जान सकता। 'पानी' शब्द का अर्थ यह पानी द्रव्य है- ऐसा ज्ञान मन को होता है। इस वाच्य-वाचक के सम्बन्ध से होने वाले ज्ञान का नाम श्रुतज्ञान, शब्दज्ञान या आगम है। श्रुतज्ञान का पहला अंश है जैसेशब्द सुना या पढ़ा, यह मतिज्ञान है और दूसरा अंश शब्द के द्वारा अर्थ को जाना, यह श्रुतज्ञान है। इसीलिए श्रुत को मतिपूर्वक कहा गया है।५९ मति और श्रुत दोनों सहचरी हैं, फिर भी दोनों में अन्तर है-मतिज्ञान विद्यमान वस्तु में प्रवृत्त होता है, जबकि श्रुतज्ञान
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